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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर कामध्वजा गणिका के घर से निकाले जाने पर कामध्वजा गणिको में मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और अध्युपपन्न, वह उज्झितक कुमार अन्यत्र कहीं भी स्मृति, रति, व धृति को प्राप्त न करता हुआ, उसी में चित्त व मन को लगाए हुए, तद्विषयक परिणामवाला, तद्विषयक अध्यवसाय, उसी सम्बन्धी प्रयत्न - विशेष वाला, उसकी ही प्राप्ति के लिए उद्यत, उसी में मन वचन और इन्द्रियों को समर्पित करने वाला, उसी की भावना से भावित होता हुआ कामध्वजा वेश्या के अनेक अन्तर, छिद्र व विवर की गवेषणा करता हुआ जीवनयापन कर रहा था । तदनन्तर वह उज्झितक कुमार किसी अन्य समय में कामध्वजा गणिका के पास जाने का अवसर प्राप्तकर गुप्तरूप से उसके घर में प्रवेश करके कामध्वजा वेश्या के साथ मनुष्य सम्बन्धी उदार विषयभोगों का उपभोग करता हुआ जीवनयापन करने लगा ।
इधर किसी समय बलमित्र नरेश, स्नान, बलिकर्म, कौतुक, मंगल प्रायश्चित्त के रूप में मस्तक पर तिलक एवं मांगलिक कार्य करके सर्व अलंकारों से अलंकृत हो, मनुष्यों के समूह से घिरा हुआ कामध्वजा वेश्या के घर गया । वहाँ उसने कामध्वजा वेश्या के साथ मनुष्य सम्बन्धी भोगों का उपभोग करते हुए उज्झितक कुमार को देखा । देखते ही वह क्रोध से लाल-पीला हो गया । मस्तक पर त्रिवलिक भृकुटि चढ़ाकर अपने अनुचरों के द्वारा उज्झितक कुमार को पकड़वाया । यष्टि, मुष्टि, जानु, कूर्पर के प्रहारों से उसके शरीर को चूर-चूर और मत करके अवकोटक बन्धन से बांधा और बाँधकर 'इसी प्रकार से यह बध्य है' ऐसी आज्ञा दी । हे गौतम! इस प्रकार वह उज्झितक कुमार पूर्वकृत पापमय कर्मों का फल भोग रहा है ।
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[१७] हे प्रभो ! यह उज्झितक कुमार यहाँ से कालमास में काल करके कहाँ जाएगा ? और कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! उज्झितक कुमार २५ वर्ष की पूर्ण आयु को भोगकर आज भागावशेष दिन में शूली द्वारा भेद को प्राप्त होकर कालमास में काल करके रत्नप्रभा में नारक रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ से निकलकर सीधा इसी जम्बूद्वीप में भारतवर्ष के वैताढ्य पर्वत के पादमूल में वानर के रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ पर बालभाव को त्यागकर युवावस्था को प्राप्त होता हुआ वह पशु सम्बन्धी भोगों में मूर्च्छित, गृद्ध, भोगों के स्नेहपाश में जकड़ा हुआ और भोगों ही में मन को लगाए रखनेवाला होगा । वह उत्पन्न हुए वानरशिशुओं का अवहनन किया करेगा । ऐसे कुकर्म में तल्लीन हुआ वह काल मास में काल करके इसी जम्बूद्वीप में इन्द्रपुर नामक नगर में गणिका के घर में पुत्र रूप में उत्पन्न होगा । माता-पिता उत्पन्न होते ही उस बालक को वर्द्धितक बना देंगे और नपुंसक के कार्य सिखलाएंगे । बारह दिन के व्यतीत हो जाने पर उसके माता-पिता उसका 'प्रियसेन' यह नामकरण करेंगे । बाल्यभाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त तथा विज्ञ, एवं बुद्धि आदि की परिपक्व अवस्था को उपलब्ध करनेवाला यह प्रियसेन नपुंसक रूप, यौवन व लावण्य के द्वारा उत्कृष्ट - उत्तम और उत्कृष्ट शरीरवाला होगा । तदनन्तर वह प्रियसेन नपुंसक इन्द्रपुर नगर के राजा, ईश्वर यावत् अन्य मनुष्यों को अनेक प्रकार के प्रयोगों से, मन्त्रों से मन्त्रित चूर्ण, भस्म आदि से, हृदय को शून्य कर देनेवाले, अदृश्य कर देनेवाले, वश में करनेवाले, प्रसन्न कर देनेवाले और पराधीन कर देनेवाले प्रयोगों से वशीभूत करके मनुष्य सम्बन्धी उदार भोगों को भोगता हुआ समययापन करेगा । इस तरह वह प्रियसेन नपुंसक इन पापपूर्ण कामों में ही बना रहेगा ।