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________________ १२४ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद प्रकार के शूल आदि पर पकाये गये गोमांसों के साथ अनेक प्रकार की मदिरा आदि का आस्वादन, विस्वादन करती हुई अपने दोहद को परिपूर्ण करती है । इस तरह वह परिपूर्ण दोहद वाली, सन्मानित दोहद वाली, विनीत दोहद वाली, व्युच्छिन्न दोहद वाली व सम्पन्न दोहद वाली होकर उस गर्भ को सुखपूर्वक धारण करती है । [१४] तदनन्तर उस उत्पला नामक कूटग्राहिणी ने किसी समय नव-मास परिपूर्ण हो जाने पर पुत्र को जन्म दिया । जन्म के साथ ही उस बालक ने अत्यन्त कर्णकटु तथा चीत्कारपूर्ण भयंकर आवाज की । उस बालक के कठोर, चीत्कारपूर्ण शब्दों को सुनकर तथा अवधारण कर हस्तिनापुर नगर के बहुत से नागरिक पशु यावत् वृषभ आदि भयभीत व उद्वेग को प्राप्त होकर चारों दिशाओं में भागने लगे । इससे उसके माता-पिता ने इस तरह उसका नाम - संस्करण किया कि जन्म के साथ ही इस बालक ने चीत्कार के द्वारा कर्णकटु स्वर युक्त आक्रन्दन किया, इस प्रकार के उस कर्णकटु, चीत्कारपूर्ण आक्रन्दन को सुनकर तथा अवधारण कर हस्तिनापुर के गौ आदि नागरिक पशु भयभीत व उद्विग्न होकर चारों तरफ भागने लगे, अतः इस बालक का नाम गोत्रास रक्खा जाता है । तदनन्तर यथासमय उस गोत्रास नामक बालक ने बाल्यावस्था को त्याग कर युवावस्था में प्रवेश किया । तत्पश्चात् भीम कूटग्राह किसी समय कालधर्म को प्राप्त हुआ । तब गोत्रास बालक ने अपने मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों से परिवृत होकर रुदन, विलपन तथा आक्रन्दन करते हुए अपने पिता भीम कूटग्राह का दाहसंस्कार किया । अनेक लौकिक मृतक - क्रियाएँ की । तदनन्तर सुनन्द नामक राजा ने किसी समय स्वयमेव गोत्रास बालक को कूटग्राह के पद पर नियुक्त किया । गोत्रास भी महान् अधर्मी व दुष्प्रत्यानन्द था । उसके बाद वह गोत्रास कूटग्राह प्रतिदिन आधी रात्रि के समय सैनिक की तरह तैयार होकर कवच पहिनकर और शस्त्रास्त्रों को धारण कर अपने घर से निकलता । गोमण्डप में जाता । अनेक गौ आदि नागरिक पशुओं के अंङ्गोपाङ्गों को काटकर आ जाता । उन गौ आदि पशुओं के शूलपक्क तले, भुने, सूखे और नमकीन मांसों के साथ मदिरा आदि का आस्वादन, विस्वादन करता हुआ जीवनयापन करता । तदनन्तर वह गोत्रास कूटग्राह इस प्रकार के कर्मोंवाला, इस प्रकार के कार्यों में प्रधानता रखनेवाला, इस प्रकार की पाप-विद्या को जाननेवाला तथा ऐसे क्रूर आचरणोंवाला नाना प्रकार के पापकर्मों का उपार्जन कर पांच सौ वर्ष का पूरा आयुष्य भोगकर चिन्ता और दुःख से पीड़ित होकर मरणावसर में काल करके उत्कृष्ट तीन सागर की उत्कृष्ट स्थितिवाले दूसरे नरक में नारक रूप से उत्पन्न हुआ । [१५] विजयमित्र की सुभद्रा नाम की भार्या जातनिन्दुका थी । अतएव जन्म लेते ही उसके बालक विनाश को प्राप्त हो जाते थे । तत्पश्चात् वह गोत्रास कूटग्राह का जीव भी दूसरे नरक से निकलकर सीधा इसी वाणिजग्राम नगर के विजयमित्र सार्थवाह की सुभद्रा नाम की भार्या के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ - नव मास परिपूर्ण होने पर सुभद्रा सार्थवाही ने पुत्र को जन्म दिया । तत्पश्चात् सुभद्रा सार्थवाही उस बालक को जन्मते ही एकान्त में कूड़ेकर्कट के ढेर पर डलवा देती है, और पुनः उठवा लेती है । तत्पश्चात् क्रमशः संरक्षण व संगोपन करती हुई उसका परिवर्द्धन करने लगती है । उसके बाद उस बालक के माता-पिता स्थितिपतित के अनुसार पुत्रजन्मोचित बधाई बांटने आदि की क्रिया करते हैं । चन्द्र-सूर्य
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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