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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
विचार करके हे मेघ ! तुमने एक बार कभी प्रथम वर्षाकाल में खूब वर्षा होने पर गंगा महानदी के समीप बहुत-से हाथियों यावत् हथिनियों से परिवृत होकर एक योजन परिमित बड़े घेरेवाला विशाल मंडल बनाया । उस मंडल में जो कुछ भी घास, पत्ते, काष्ठ, कांटे लता, बेलें, लूंठ, वृक्ष या पौधे आदि थे, उन सबको तीन बार हिला कर पैर से उखाड़ा, सूंड से पकड़ा और एक और ले जाकर डाल दिया । हे मेघ ! तत्पश्चात् तुम उसी मंडल के समीप गंगा महानदी के दक्षिणी किनारे, विन्ध्याचल के पादमूल में, पर्वत आदि पूर्वोक्त स्थानों में विचरण करने लगे। हे मेघ ! किसी अन्य समय मध्य वर्षाऋतु में खूब वर्षा होने पर तुम उस स्थान पर गए जहाँ मंडल था । वहाँ जाकर दूसरी बार, इसी प्रकार अन्तिम वर्षा-रात्रि में भी घोर वृष्टि होने पर जहाँ मंडल था, वहाँ जाकर तीसरी बार उस मंडल को साफ किया । वहाँ जो भी घास, पत्ते, काष्ठ, कांटे, लता, बेलें ढूंठ, वृक्ष या पौधे उगे थे, उन सबको उखाड़कर सुखपूर्वक विचरण करने लगे ।
हे मेघ ! तुम गजेन्द्र पर्याय में वर्त्त रहे थे कि अनुक्रम से कमलिनियों के वन का विनाश करने वाला, कुंद और लोध्र के पुष्पों की समृद्धि से सम्पन्न तथा अत्यन्त हिमवाला हेमन्त ऋतु व्यतीत हो गया और अभिनव ग्रीष्म काल आ पहुँचा । उस समय तुम वनों में विचरण कर रहे थे । वहाँ क्रीड़ा करते समय वन की हथिनियाँ तुम्हारे ऊपर विविध प्रकार के कमलों एवं पुष्पों का प्रहार करती थीं । तुम उस ऋतु में उत्पन्न पुष्पों के बने चामर जैसे कर्ण के आभूषणों से मंडित और मनोहर थे । मद के कारण विकसित गंडस्थलों को आर्द्र करनेवाले तथा झरते हुए सुगन्धित मदजल से तुम सुगन्धमय बन गये थे । हथिनियों से घिरे थे । सब तरह से ऋतु सम्बन्धी शोभा उत्पन्न हुई थी । उस ग्रीष्मकाल में सूर्य की प्रखर किरणें पड़ रही थीं । उस ग्रीष्मऋतु ने श्रेष्ठ वृक्षों के शिखरों को शुष्क बना दिया था । वह बड़ा ही भयंकर प्रतीत होता था | शब्द करनेवाले श्रृंगार नामक पक्षी भयानक शब्द कर रहे थे । पत्र, काष्ठ, तृण और कचरे को उड़ानेवाले प्रतिकूल पवन से आकाशतल और वृक्षों का समूह व्याप्त हो गया था । वह बवण्डरों के कारण भयानक दीख पड़ता था । प्यास के कारण उत्पन्न वेदनादि दोषों से ग्रस्त और इसी कारण इधर-उधर भटकते हुए श्वापदों से युक्त था । देखने में ऐसा भयानक ग्रीष्मऋतु, उत्पन्न हुए दावानल के कारण अधिक दारुण हो गया ।
वह दावानल वायु के संचार के कारण फैला हुआ और विकसित हुआ था । उसके शब्द का प्रकार अत्यधिक भयंकर था । वृक्षों से गिरने वाले मधु की धाराओं से सिञ्चित होने कारण वह अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त हुआ था, धधकने की ध्वनि से परिख्याप्त था । वह अत्यन्त चमकती हुई चिनगारियों से युक्त और धूम की कतार से व्याप्त था । सैकड़ों के प्राणों का अन्त करनेवाला था । इस प्रकार तीव्रता को प्राप्त दावानल के कारण वह ग्रीष्मऋतु अत्यन्त भयङ्कर दिखाई देती थी । हे मेघ ! तुम उस दावानल की ज्वालाओं से आच्छादित हो गये, रुक गयेइच्छानुसार गमन करने में असमर्थ हो गये । धुएँ के कारण उत्पन्न हुए अन्धकार से भयभीत हो गये । अग्नि के ताप को देखने से तुम्हारे दोनों कान अरघट्ट के तुंब के समान स्तब्ध रह गये । तुम्हारी मोटी और बड़ी सूंड सिकुड़ गई । तुम्हारे चमकते हुए नेत्र भय के कारण इधरउधर फिरते-देखने लगे । जैसे वाये के कारण महामेघ का विस्तार हो जाता है, उसी प्रकार वेग का कारण तुम्हारा स्वरूप विस्तृत दिखाई देने लगा । पहले दावानल के भय से भीतहृदय