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________________ ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१/१५ अर्थ समझा, दूसरों का अभिप्राय जानकार विशेष अर्थ समझा, आपस में उस अर्थ की पूछताछ की, अर्थ का निश्चय किया और फिर तथ्य अर्थ का निश्चय किया वे स्वप्नपाठक श्रेणिक राजा के सामने स्वप्नशास्त्रों का बार-बार उच्चारण करते हुए इस प्रकार बोले हे स्वामिन् ! हमारे स्वप्नशास्त्र में बयालीस स्वप्न और तीस महास्वप्न-कुल मिलाकर ७२ स्वप्न हैं । अरिहंत और चक्रवर्ती की माता, जब अरिहन्त और चक्रवर्ती गर्भ में आते हैं तो तीस महास्वप्नों में चौदह महास्वप्न देखकर जागती हैं । वे इस प्रकार हैं [१६] हाथी, वृषभ, सिंह, अभिषेक, पुष्पों की माला, चन्द्र, सूर्य, ध्वजा, पूर्ण कुंभ, पद्मयुक्त सरोवर, क्षीरसागर, विमान, रत्नों की राशि और अग्नि । [१७] जब वासुदेव गर्भ में आते हैं तो वासुदेव की माता इन चौदह महास्वप्नों में किन्हीं भी सात महास्वप्नों को देखकर जागृत होती है । जब बलदेव गर्भ में आते हैं तो बलदेव की माता इन चौदह महास्वप्नों में से किन्हीं चार महास्वप्नों को देखकर जागृत होती है । जब मांडलिक राजा गर्भ में आता हैं तो मांडलिक राजा की माता इन चौदह महास्वप्नों में से कोई एक महास्वप्न देखकर जागृत होती है । स्वामिन् ! धारिणी देवी ने इन महास्वप्नों में से एक महास्वप्न देखा है; अतएव स्वामिन् ! धारिणी देवी ने उदार स्वप्न देखा है, यावत् आरोग्य, तृष्टि, दीर्घायु, कल्याण और मंगलकारी, स्वामिन् ! धारिणी देवी ने स्वप्न देखा है । स्वामिन् ! इससे आपको अर्थलाभ होगा। सुख का लाभ होगा । भोग का लाभ होगा, पुत्र का तथा राज्य का लाभ होगा । इस प्रकार स्वामिन् ! धारिणी देवी पूरे नौ मास व्यतीत होने पर यावत् पुत्र को जन्म देगी । वह पुत्र बाल-वय को पार करके, गुरु की साक्षी मात्र से, अपने ही बुद्धिवैभव से समस्त कलाओं का ज्ञाता होकर, युवावस्था को पार करके संग्राम में शूर, आक्रमण करने में वीर और पराक्रमी होगा । विस्तीर्ण और विपुल बल वाहनों का स्वामी होगा । राज्या का अधिपति राजा होगा अथवा अपनी आत्मा को भावित करने वाला अनगार होगा । अतएव हे स्वामिन् ! धारिणी देवी ने उदार-स्वप्न देखा है यावत् आरोग्यकारके तुष्टिकारक आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाला स्वप्न देखा है । उस प्रकार कह कर स्वप्नपाठक बार-बार उस स्वप्न की सराहना करने लगे । तत्पश्चात् श्रेणिक राजा उस स्वप्नपाठकों से इस कथन को सुनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट, तृष्ट एवं आनन्दितहृदय हो गया और जोड़ करइस प्रकार बोला - देवानुप्रियो ! जो आप कहते हो सो वैसा ही है - इस प्रकार कहकर उस स्वप्न के फल को सम्यक् से स्वीकार करके उन स्वप्नपाठकों का विपुल अशन, पान, खाद्य और वस्त्र, गंध, माला एवं अलंकारों से सत्कार करता है, सन्मान करता है । जीविका योग्य प्रीतिदान देकर विदा करता है । तत्पश्चात् श्रेणिक राजा सिंहासन से उठा और जहाँ धारिणी देवी थी, वहां आया । आकर धारिणी देवी से उस प्रकार बोला-'हे देवानुप्रिये ! स्वप्नशास्त्र में बयालीस स्वप्न और तीस महास्वप्न कहे हैं, उनमें से तुमने एक महास्वप्न देखा है ।' इत्यादि स्वप्नपाठकों के कथन के अनुसार सब कहता है और बार-बार स्वप्न की अनुमोदना करता है । तत्पश्चात् धारिणी देवी,श्रेणिक राजा का यह कथन सुनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट-तुष्ट हुई, यावत् आनन्दितहृदय हुई । उसने उस स्वप्न को सम्यक् प्रकार से अंगीकार किया । अपने निवासगृह में आई । स्नान करके तथा बलिकर्म यावत् विपुल भोग भोगती हुई विचरने लगी ।
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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