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________________ ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१/१५ उत्पन्न करनेवाला अर्थात् रुधिर आदि धातुओं को सम करनेवाले, जठराग्नि को दीप्त करनेवाले, दर्पणीय अर्थात् शरीर का बल बढ़ानेवाले, मदनीय, मांसवर्धक तथा समस्त इन्द्रियों को एवं शरीर को आह्लादित करनेवाले थे, राजा श्रेणिक ने अभ्यंगन कराया । फिर मालिश किये शरीर के चर्म को, परिपूर्ण हाथ-पैर वाले तथा कोमल तल वाले, छेक दक्ष, बलळासी, कुशल, मेधावी, निपुण, निपुण शिल्पी परिश्रम को जीतनेवाले, अभ्यंगन मर्दन उद्वर्तन करने के गुणों से पूर्ण पुरुषों द्वारा अस्थियों को सुखकारी, मांस को सुखकारी, त्वचा को सुखकारी तथा रोमों को सुखकारी- इस प्रकार चार तरह की बाधना से श्रेणिक के शरीर क मर्दन किया गया । इस मालिश और मर्दन से राजा का परिश्रम दूर हो गया - थकावट मिट गई । वह व्यायामशाला से बाहर निकला । श्रेणिक राजा जहाँ मज्जनगृह आता है । मजमगृह में प्रवेश करता है । चारों ओर जालियों से मनोहर, चित्र-विचित्र मणियों और रत्नों के फर्श वाले तथा रमणीय स्नानमंडप के भीतर विविध प्रकार के मणियों और रत्नों की रचना से चित्र-विचित्र स्नान करने के पीठबाजीठ पर सुखपूर्वक बैठा । ५९ उसने पवित्र स्थान से लाए हुए शुभ जल से, पुष्पमिश्रित जल से, सुगंध मिश्रित जल से और शुद्ध जल से बार-बार कल्याणकारी आनन्दप्रद और उत्तम विधि से स्नान किया । उस कल्याणकारी और उत्तम स्थान के अंत में रक्षा पोटली आदि सैंकडों कौतुक किये गए । तत्पश्चात् पक्षी के पंख के समान अत्यन्त कोमल, सुगंधित और काषाय रंग से रंगे हुए वस्त्र से शरीर को पोंछा । कोरा, बहुमूल्य और श्रेष्ठ वस्त्र धारण किया । सरस और सुगंधित गोशीर्ष चन्दन से शरीर पर विलेपन किया । शुचि पुष्पों की माली पहनी । केसर आदि का लेपन किया । मणियों के और स्वर्ण के अलंकार धारण किया । अठारह लड़ों के हार, नौ लड़ों के अर्धहार, तीन लड़ों के छोटे हार तथा लम्बे लटकते हुए कटिसूत्र से शरीर की शोभा बढ़ाई । कंठ में कंठा पहना । उंगलियों में अंगूठियाँ धारण की । सुन्दर अंग पर अन्यान्य सुदर आक्षरण धारण किये । अनेक मणियों के बने कटक और त्रुटिक नामक आभूषणों से उसके हाथ स्तंभित से प्रतीत होने लगे । अतिशय रूप के कारण राजा अत्यन्त सुशोभित हो उठा । कुंडलों के कारण उसका मुखमंडल उद्दीप्त हो गया । मुकुट से मस्तक प्रकाशित होने लगा । वक्ष स्थल हार से आच्छादित होने के कारण अतिशय प्रीति उत्पन्न करने लगा । लम्बे लटकते हुए दुपट्टे से उसने सुन्दर उत्तरासंग किया । मुद्रिकाओं से उसकी उंगलियाँ पीली दीखने लगीं। नाना भांति की मणियों, सुवर्ण और रत्नों से निर्मल, महामूल्यवान्, निपुण कलाकालों द्वारा निर्मित, चमचमते हुए, सुरचित, भली-भांति मिली हुई सन्धियों वाले, विशिष्ट प्रकार के मनोहर, सुन्दर आकार वाले और प्रशस्त वीर-वलय धारण किये । अधिक क्या कहा जाय ? मुकुट आदि आभूषणों से अलंकृत और वस्त्रों से विभूषित राजा श्रेणिक कल्पवृक्ष के समान दिखाई देने लगा | कोरंट वृक्ष के पुष्पों की माला वाला छत्र उसके मस्तक पर धारण किया गया । आजू-बाजू चार चामरों से उसका शरीर बींजा जाने लगा । राजा पर दृष्टि पड़ते ही लोग 'जयजय का मांगलिक घोष करने लगे । अनेक गणनायक, दंडनायक, राजा, ईश्वर, तलवर, मंत्री, महामंत्री, ज्योतिषी, द्वारपाल, अमात्य, चेट, पीठमर्द, नागरिक लोग, व्यापारी, सेठ, सेनापति, सार्थवाह, दूत और सन्धिपाल - इन सब से घिरा हुआ ग्रहों के समूह में देदीप्यमान तथा नक्षत्रों और ताराओं के बीच चन्द्रमा के समान प्रियदर्शन राजा श्रेणिक मज्जनगृह से इस प्रकार
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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