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भगवती-४०/२ से २१/-/१०६७
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अन्तमुहूर्त अधिक नहीं कहना । शेष पूर्ववत् । इस प्रकार इन पांचों शतकों में कृष्णलेश्याशतक के समान गमक पहले अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं, तक जानना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
शुक्ललेश्याशतक भी औधिक शतक के समान है । इनका संचिट्ठणाकाल और स्थिति कृष्णलेश्याशतक के समान है । शेष पूर्ववत्, पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, तक कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है.' । भगवन् ! कृतयुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त भवसिद्धिकसंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथम संज्ञीशतक के अनुसार भवसिद्धिक के आलापक से यह शतक जानना चाहिए । विशेष में भगवन् ! क्या सभी प्राण, भूत, जीव
और सत्त्व यहाँ पहले उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
भगवन् ! कृष्णलेश्यी-भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि समग्र प्रश्न । गौतम ! कृष्णलेश्यी औधिकशतक के अनुसार कहना । 'भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । नीललेश्यीभवसिद्धिकशतक भी इसी प्रकार जानना । 'भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवों के सात औधिकशतक समान भवसिद्धिक सम्बन्धी सातों शतक कहने चाहिए । विशेष यह है-सातों शतकों में क्या...इससे पूर्व सर्व प्राण, यावत् सर्व सत्त्व उत्पन्न हुए हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । शेष पूर्ववत्। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'।
भगवन् ! अभवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयग्मराशि-संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! अनुत्तरविमानों को छोड़ कर शेष सभी स्थानों में पूर्ववत् उपपात जानना। इनका परिमाण, अपहार, ऊँचाई, बन्ध, वेद, वेदन, उदय और उदीरणा कृष्णलेश्याशतक के समान है । कृष्णलेश्यी से लेकर यावत् शुक्ललेश्यी होते हैं । केवल मिथ्यादृष्टि होते हैं । अज्ञानी हैं । इसी प्रकार सब कृष्णलेश्याशतक के समान है । विशेष यह है कि वे अविरत होते हैं । इनका संचिट्ठणाकाल और स्थिति औधिक उद्देशक के अनुसार जानना । इनमें प्रथम के पांच समुद्घात हैं । उद्धर्तना अनुत्तरविमानों को छोड़कर पूर्ववत् जानना चाहिए । तथाक्या सभी प्राण यावत् सत्त्व पहले इनमें उत्पन्न हुए हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं । शेष कृष्णलेश्याशतक के समान पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, तक कहना । इसी प्रकार सोलह ही युग्मों के विषय में जानना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
भगवन् ! प्रथमसमयोत्पन्न अभवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न | गौतम ! प्रथमसमय के संज्ञी-उद्देशक के अनुसार जानना । विशेष-सम्यक्त्व, सम्यगमिथ्यात्व और ज्ञान सर्वत्र नहीं होता । शेष पूर्ववत्। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । इस प्रकार इस शतक में भी ग्यारह उद्देशक होते हैं । इनमें से प्रथम, तृतीय एवं पंचम, ये तीनों उद्देशक समान पाठ वाले हैं तथा शेष आठ उद्देशक भी एक समान हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
भगवन् ! कृष्णलेश्यी-अभवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! औधिक शतक है, अनुसार कृष्णलेश्या-शतक जानना चाहिए । विशेष-भगवन् ! वे जीव कृष्णलेश्या वाले हैं ? हाँ, गौतम ! हैं ।' इनकी स्थिति