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भगवती-३५/१/२/१०४६
से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार प्रथम उद्देशक अनुसार द्वितीय उद्देशक में भी उत्पाद-परिमाण सोलह बार कहना चाहिए । अन्य सब पूर्ववत् । किन्तु इन दस बातों में भिन्नता है, यथा-अवगाहना-जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग है और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग है । आयुष्यकर्म के बन्धक नहीं, अबन्धक होते हैं । आयुष्यकर्म के ये उदीरक नहीं, अनुदीरक होते हैं । ये उच्छ्वास, निःश्वास तथा उच्छ्वास-निःश्वास से युक्त नहीं होते और ये सात प्रकार के कर्मों के बन्धक होते हैं, अष्टविधकर्मों के बन्धक नहीं होते ।
भगवन् ! वे प्रथमसमयोत्पन्न कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कितने काल तक होते हैं । गौतम ! एक समय । उनकी स्थिति भी इतनी ही है । उनमें आदि के दो समुद्घात होते हैं । उनमें समवहत एवं उद्वर्तना नहीं होने से, इन दोनों की पृच्छा नहीं करनी चाहिए । शेष सब बातें सोलह ही महायुग्मों में अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, तक उसी प्रकार कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।।
शतक-३५/१ उद्देशक-३ से ११ [१०४७] भगवन् ! अप्रथमसमयोत्पन्न कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथम उद्देशक अनुसार इस उद्देशक में भी सोलह महायुग्मों के पाठ द्वारा यावत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, तक । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' ।
[१०४८] भगवन् ! चरमसमयोत्पन्न कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथमसमय उद्देशक अनुसार कहना चाहिए । किन्तु इनमें देव उत्पन्न नहीं होते तथा तेजोलेश्या के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए । शेष पूर्ववत् ।
[१०४९] भगवन् ! अचरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! अप्रथमसमय उद्देशक के अनुसार कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है' ।
[१०५०] भगवन् ! प्रथमप्रथमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथमसमय के उद्देशक अनुसार समग्र कथन करना ।
[१०५१] भगवन् ! प्रथम-अप्रथमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथमसमय के उद्देशकानुसार कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
[१०५२] भगवन् ! प्रथम-चरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्दिश्य जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चरमउद्देशक अनुसार जानना ।
[१०५३] भगवन् ! प्रथम-अचरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! दूसरे उद्देशक के अनुसार जानना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
[१०५४] भगवन् ! चरम-चरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चौथे उद्देशक के अनुसार जानना ।