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________________ भगवती-३४/१/१/१०३४ ३३ समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! एक समय, दो समय या तीन समय की। भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जैसे रत्नप्रभापृथ्वी में सप्तश्रेणीरूप हेतु कहा, वही हेतु यहाँ जानना चाहिए । इसी प्रकार पर्याप्त बादरतेजस्कायिक-रूप में उपपात का भी कथन करना । पृथ्वीकायिक के चारों भेदों सहित उपपात समान वायुकायिक और वनस्पतिकायिक का भी चार-चार भेद सहित उपपात कहना चाहिए । इसी प्रकार पर्याप्त बादरतेजस्कायिक का उपपात भी इन्हीं स्थानों में जानना । पृथ्वीकायिक जीव के उपपात कथन समान वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के उपपात का कथन करना । भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक ऊर्ध्वलोकक्षेत्रीय त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके, अधोलोकक्षेत्रीय त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिकरूप से उत्पन्न होने योग्य है तो भंते ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! ऊर्ध्वलोकक्षेत्रीय त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरणसमुद्घात करके अधोलोकक्षेत्रीय त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले पृथ्वीकायिकादि के लिए भी वही समग्र पूर्वोक्त गमक पर्याप्त बादरवनस्पतिकायिक जीव का पर्याप्त बादरवनस्पतिकायिकरूप में उपपात तक कथन यहां करना । भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव, लोक के पूर्वी-चरमान्त में मरणसमुद्घात करके लोक के पूर्वी-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिकरूप में उत्पन्न होने योग्य है, तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम! वह एक, दो, तीन या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि वह एक समय की यावत् उत्पन्न होता है ? गौतम ! मैंने सात श्रेणियाँ बताई हैं, यथा-ऋज्वायता यावत् अर्द्धचक्रवाला । ऋज्वायता श्रेणी से उत्पन्न होता है तो एक समय की विग्रहगति से एकतोवक्रा श्रेणी से उत्पनन होता है तो दो समय की विग्रहगति से उभयतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है तो जो एक प्रतर में अनुश्रेणी से उत्पन्न होने योग्य है, वह तीन समय की विग्रहगति से और यदि वह विश्रेणी से उत्पन्न होने योग्य है तो वह चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है । इसी कारण हे गौतम ! पूर्वोक्त कथन किया गया है कि वह एक समय की...यावत् चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है । इसी प्रकार अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव का लोक के पूर्वी-चरमान्त में (मरण) समुद्घात करके लोक के पूर्वी-चरमान्त में ही अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों में, अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मअप्कायिक जीवों में, अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मतेजस्कायिक जीवों में, अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मवायुकायिक जीवों में, अपर्याप्त और पर्याप्त बादरवायुकायिक जीवों में तथा अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक जीवों में, इस प्रकार इन अपर्याप्त और पर्याप्त-रूप बारह ही स्थानों में इसी क्रम से उपपात कहना चाहिए । पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव का उपपात पूर्ववत् बारहस्थानों में करना । ऐसे ही पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक तक पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक जीवों में उपपात का कथन करना चाहिए । भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव लोक के पूर्वी-चरमान्त में समुद्घात करके लोक के दक्षिण-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! दो समय, तीन समय या चार समय की । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! मैंने सात श्रेणियाँ बताई हैं,
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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