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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
पूंछ, पंख, सींग, रोम जहां से भी पकड़ लेता है, उसे वहीं निश्चल तथा निष्पन्द कर देता है, इसी प्रकार श्रमण भगवान् महावीर मुझे अनेक प्रकार के तात्त्विक अर्थों, हेतुओं तथा विश्लेषणों द्वारा जहां-जहां पकड़ लेंगे, वहीं वहीं मुझे निरुत्तर कर देंगे । सकडालपुत्र ! इसीलिए कहता हूं कि भगवान् महावीर के साथ मैं तत्वचर्चा करने में समर्थ नहीं हूं।
तब श्रमणोपासक सकडालपुत्र ने गोशालक मंखलिपुत्र से कहा-देवानुप्रिय ! आप मेरे धर्माचार्य महावीर का सत्य, यथार्थ, तथ्य तथा सद्भूत भावों से गुणकीर्तन कर रहे हैं, इसलिए मैं आपको प्रातिहारिक पीठ तथा संस्तारक हेतु आमंत्रित करता हूँ, धर्म या तप मानकर नहीं। आप मेरे कुंभकारापण में प्रातिहारिक पीठ, फलक ग्रहण कर निवास करें । मंखलिपुत्र गोशालक ने श्रमणोपासक सकडालपुत्र का यह कथन स्वीकार किया और वह उसकी कर्म-शालाओं में प्रातिहारिक पीठ ग्रहण कर रह गया । मंखलिपुत्र गोशालक आख्यापना-प्रज्ञापना-संज्ञापनाविज्ञापना-करके भी जब श्रमणोपासक सकडालपुत्र को निर्ग्रन्थ-प्रवचन से विचलित, क्षुभित तथा विपरिणामित नहीं कर सका तो वह श्रान्त, वलान्त और खिन्न होकर पोलासपुर नगर से प्रस्थान कर अन्य जनपदों में विहार कर गया ।
[४७] तदनन्तर श्रमणोपासक सकडालपुत्र को व्रतों की उपासना द्वारा आत्म-भावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए । जब पन्द्रहवां वर्ष चल रहा था, तब एक बार आधी रात के समय वह श्रमण भगवान् महावीर के पास अंगीकृत धर्मप्रज्ञप्ति के अनुरूप पोषधशाला में उपासनारत था । अर्ध-रात्रि में श्रमणोपासक सकडालपुत्र समक्ष एक देव प्रकट हुआ । उस देव ने एक बड़ी, नीली तलवार निकाल कर श्रमणोपासक सकडालपुत्र से उसी प्रकार कहा, वैस ही उपसर्ग किया, जैसा चुलनीपिता के साथ देव ने किया था । केवल यही अन्तर था कि यहां देव ने एक एक पुत्र के नौ नौ मांस-खंड किए । ऐसा होने पर भी श्रमणोपासक सकडालपुत्र निर्भीकतापूर्वक धर्म-ध्यान में लगा रहा ।
उस देव ने जब श्रमणोपासक सकडालपुत्र को निर्भीक देखा, तो चौथी बार उसको कहा-मौत को चाहनेवाले श्रमणोपासक सकडालपुत्र ! यदि तुम अपना व्रत नहीं तोड़ते हो तो तुम्हारी धर्म-सहायिका धर्मवैद्या अथवा धर्मद्वितीया, धर्मानुरागरक्ता, समसुखदुःख-सहायिकापत्नी अग्निमित्रा को घर से ले आऊंगा, तुम्हारे आगे उसकी हत्या करूंगा, नौ मांस-खंड करूंगा, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाऊंगा, उसके मांस और रक्त से तुम्हारे शरीर को सींचूंगा, जिससे तुम आर्तध्यान और विकट दुःख से पीडित होकर प्राणों से हाथ धो बैठोगे। देव द्वारा यों कहे जाने पर भी सकडालपुत्र निर्भीकतापूर्वक धर्म-ध्यान में लगा रहा । तब उस देव ने श्रमणोपासक सकडालपुत्र को पुनः दूसरी बार, तीसरी बार वैसा ही कहा । उस देव द्वारा पुनः दूसरी बार, तीसरी बार वैसा कहे जाने पर श्रमणोपासक सकडालपुत्र के मन में चुलनीपिता की तरह विचार उत्पन्न हुआ । वह सोचने लगा-जिसने मेरे बड़े पुत्र को, मंझले पुत्र को तथा छोटे पुत्र को मारा, उनका मांस और रक्त मेरे शरीर पर छिड़का, अब मेरी सुख दुःख में सहयागिनी पत्नी अग्निमित्रा को घर से ले आकर मेरे आगे मार देना चाहता है, अतः मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि मैं इस पुरुष को पकड़ लूं । यों विचार कर वह दौड़ा । सकडालपुत्र की पत्नी अग्निमित्रा ने कोलाहाल सुना । शेष चुलनीपिता की तरह है । केवल इतना भेद है, सकडालपुत्र अरुणभूत विमान में उत्पन्न हुआ । महाविदेह क्षेत्र में वह सिद्ध-मुक्त होगा ।
अध्ययन-७ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण