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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद जाउ यावत् भगवंत की पर्युपासना करु । ऐसा सोचकर शुद्ध एवं सभामें पहनने लायक वस्त्र धारण करके, अल्प एवं महामूल्यवान् अलंकार धारण करके आनंद गृहपति अपने घरसे निकला । कोरंट पुष्पो की माला से युक्त छत्र धारण किया हुआ और जनसमूह से परिवृत्त होकर चलता चलता वह वाणिज्य ग्रामनगर के बीचोबीच से निकलकर जहां दूतिपलाश चैत्य था । जहा भगवान् महावीर थे वहा कर, भगवंत की तीन बार प्रदक्षिणा करके वंदन नमस्कार यावत् पर्युपासना करता है । २४४ [६] तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर ने आनन्द गाथापति तथा महती परिषद् को धर्मोपदेश किया । पर्षदा वापस लौटी और राजा भी नीकला । 1 [७] तब आनन्द गाथापति श्रमण भगवान् महावीर से धर्म का श्रवण कर हर्षित व परितुष्ट होता हुआ यों बोला- भगवन् ! मुझे निर्ग्रन्थ- प्रवचन में श्रद्धा है, विश्वास है । निर्ग्रन्थप्रवचन मुझे रुचिकर है । वह ऐसा ही है, तथ्य है, सत्य है, इच्छित है, प्रतीच्छित है, इच्छितप्रतीच्छित है । यह वैसा ही है, जैसा आपने कहा । देवानुप्रिय ! जिस प्रकार आपके पास अनेक राजा, ऐश्वर्यशाली, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, श्रेष्ठी, सेनापति एवं सार्थवाह आदि मुंडित होकर, गृह-वास का परित्याग कर अनगार के रूप में प्रव्रजित हुए, मैं उस प्रकार मंडित होकर प्रव्रजित होने में असमर्थ हूं, इसलिए आपके पास पांच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत मूलक बारह प्रकार का गृहधर्म-ग्रहण करना चाहता हूं । भगवान् ने कहा- देवानुप्रिय ! जिससे तुमको सुख हो, वैसा ही करो, पर विलम्ब मत करो [८] तब आनन्द गाथापति ने श्रमण भगवान् महावीर के पास प्रथम स्थूल प्राणातिपातपरित्याग किया । मैं जीवन पर्यन्त दो करण करना, कराना तथा तीन योग - मन, वचन एवं काया से स्थूल हिंसा का परित्याग करता हूं, तदनन्तर उसने स्थूल मृषावाद - का परित्याग किया, मैं जीवन भर के लिए दो कारण और तीन योग से स्थूल मृषावाद का परित्याग करता हूं । उसके बाद उसने स्थूल अदत्तादान का परित्याग किया। मैं जीवन भर के लिए दो करण और तीन योग से स्थूल चोरी का परित्याग करता हूं । फिर उसने स्वदारसंतोष व्रत के अन्तर्गत मैथुन का परिमाण किया । अपनी एकमात्र पत्नी शिवनंदा के अतिरिक्त अवशेष समग्र मैथुनविधि का परित्याग करता हूं । तब उसने - परिग्रह का परिमाण करते हुए - निधान चार करोड़ स्वर्ण मुद्राओं, व्यापारप्रयुक्त चार करोड़ स्वर्ण मुद्राओं तथा घर व घर के उपकरणों में प्रयुक्त चार करोड़ स्वर्ण मुद्राओं के अतिरिक्त मैं समस्त स्वर्ण मुद्राओं का परित्याग करता हूं । फिर उसने चतुष्पद-विधि परिमाण किया । दस-दस हजार के चार गोकुलों के अतिरिक्त मैं बाकी सभी चौपाए पशुओं के परिग्रह का परित्याग कता हूं । फिड़ उसने क्षेत्र - वास्तु-विधि का परिमाण किया - सौ निवर्तन के एक हल के हिसाब से पांच सौ हलों के अतिरिक्त मैं समस्त क्षेत्र का परित्याग करता हूं । तत्पश्चात् उसने शकटविधि का परिमाण किया । पांच सौ गाड़ियां बाहर यात्रा में तथा पांच सौ गाड़ियां माल ढोने आदि में प्रयुक्त के सिवाय मैं सब गाड़ियों के परिग्रह का परित्याग करता हूं । फिर उसने वाहनविधि - का परिमाण किया । पांच सौ वाहन दिग्- यात्रिक तथा पांच सौ गृह उपकरण के सन्दर्भ में प्रयुक्त के सिवाय मैं सब प्रकार के वाहन रूप परिग्रह का परित्याग करता हूं । फिर उसने उपभोग-परिभोग - विधि का प्रत्याख्यान करते हुए भीगे हुए शरीर को पोंछने
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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