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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
२३३] प्रथम अध्ययन का उपोद्घात कहना चाहिए, जम्बू ! उस काल और उस समय राजगृह नगर था । भगवान् महावीर वहाँ पधारे । यावत् परिषद् निकलकर भगवान् की पर्युपासना करने लगी । उस काल औस उस समय कमला देवी कमला नामक राजधानी में, कमलावतंसक भवन में, कमल नामक सिंहासन पर आसीन थी । शेष काली देवी अनुसार ही जानना । विशेषता यह-पूर्वभव में कमला देवी नागपुर नगर में थी । सहस्त्राभ्रवन चैत्य था। कमल गाथापति था । कमलश्री उसकी पत्नी थी कमला पुत्री थी । कमला अरहन्त पार्श्व के निकट दीक्षित हो गई । शेष पूर्ववत् यावत् वह काल नामक पिशाचेन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में जन्मी । उसकी यु वहाँ अर्ध-पल्योपम की है ।
इसी प्रकार शेष एकतीस अध्ययन दक्षिण दिशा के वाणव्यन्तर इन्द्रों के कह लेने चाहिएँ । कमलप्रभा आदि ३१ कन्याओं ने पूर्वभव में नागपुर में जन्म लिया था । वहाँ सहस्त्राम्रवन उद्यान था । सब-के माता-पिता के नाम कन्याओं के नाम के समान ही हैं । देवीभव में स्थिति सबको आधे-आधे पल्योपम की कहनी चाहिए ।
(वर्ग-६) [२३४] छठा वर्ग भी पांचवें वर्ग के समान है । विशेषता ये कि सब कुमारियां महाकाल इन्द्र आदि उत्तर दिशा के आठ इन्द्रों की बत्तीस अग्रमहिषियाँ हुई । पूर्वभव में सब साकेतनगर में उत्पन्न हुई । उत्तरकुरु उद्यान था । इन कुमारियों के नाम के समान ही उनके माता-पिता के नाम थे । शेष सब पूर्ववत् ।
(वर्ग-७) [२३५] सातवें वर्ग का उत्क्षेप कहना चाहिए हे जम्बू ! भगवान् महावीर ने सप्तम वर्ग के चार अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं । सूर्यप्रभा, आतपा, अर्चिमाली और प्रभंकरा । प्रथम अध्ययन का उपोद्घात कहना चाहिए । जम्बू ! उस काल और उस समय राजगृह में भगवान् पधारे यावत् परिषद् उनकी उपासना करने लगी ।
उस काल और उस समय सूर्य प्रभादेवी सूर्य विमान में सूर्यप्रभ सिंहासन पर आसीन थी । शेष कालीदेवी के समान । विशेष इतना कि पूर्वभव में अक्खुरी नगरी में सूर्याभ गाथापति की सूर्यश्री भार्या थी । सूर्यप्रभा पुत्री थी । अन्त में मरण के पश्चात् वह सूर्य नामक ज्योतिष्क-इन्द्र की अग्रमहिषी हुई । उसकी स्थिति वहाँ पाँच सौ वर्ष अधिक आधे पल्योपम की है । शेष कालीदेवी के समान । इसी प्रकार शेष सब-तीनों देवियों का वृत्तान्त जानना । वे भी अरक्खुरी नगरी में उत्पन्न हुई थीं ।
वर्ग[२३६] आठवें वर्ग का उपोद्घात कह लेना चाहिए, जम्बू ! श्रमण भगवान् ने आठवें वर्ग के चार अध्ययन प्ररूपित किए हैं । चन्द्रप्रभा, दोसिणाभा, अर्चिमाली, प्रभंकरा । प्रथम अध्ययन का उपोद्घात पूर्ववत् कह लेना चाहिए । जम्बू ! उस काल और उस समय में भगवान् राजगृह नगर में पधारे यावत् परिषद उनकी पर्युपास्ति करने लगी ।