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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
वर्ग-१ अध्ययन-४ 'विद्युत् [२२३] इसी प्रकार विद्युत् देवी का कथानक समझना चाहिए । विशेष यह कि आमलकल्पा नगरी थी । उसमें विद्युत नामक गाथापति निवास करता था | उसकी पत्नी विद्युत्श्री थी । विद्युत् नामक उसकी पुत्री थी । शेष पूर्ववत् ।
| वर्ग-१ अध्ययन-५ 'मेघा' । [२२४] मेघा देवी का कथनाक भी ऐसा ही जान लेना विशेषता यों है-आमलकल्पा नगरी थी । मेघ गाथापति था । मेघश्री भार्या थी । पुत्री मेघा थी । शेष पूर्ववत्, । वर्ग-१ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(वर्ग-२) [२२५] भगवन् ! यावत् मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने प्रथम वर्ग का यह अर्थ कहा है तो दूसरे वर्ग का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान् महावीर ने दूसरे वर्ग के पांच अध्ययन कहे हैं । शुंभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा और मदना । भगवन् ! यदि श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् महावीर ने धर्मकथा के द्वितीय वर्ग के पाँच अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं तो द्वितीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है ? जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था । भगवान् का पदार्पण हुआ। परिषद् निकली और भगवान् की उपासना करने लगी । उस काल और उस समय में शुंभानामक देवी बलिचंचा राजधानी में, शुंभावतंसक भवन में शुभ नामक सिंहासन पर आसीन थी, इत्यादि काली देवी के अध्ययन के अनुसार समग्र वृत्तान्त कहना चाहिए । वह नाट्यविधि प्रदर्शित करके वापिस लौट गई । गौतम स्वामी ने पूर्वभव की पृच्छा की । श्रावस्ती नगरी थी । कोष्ठक चैत्य था । जितशत्रु राजा था । शुंभ गाथापति था । शुंभश्री पत्नी थी । शुभा पुत्री थी । शेष सर्व वृत्तान्त काली देवी के समान । विशेषता यह है-शुंभा देवी की साढ़े तीन पल्योपम की स्थिति है । उसका निक्षेप कह लेना चाहिए ।
शेष चार अध्ययन पूर्वोक्त प्रकार के ही हैं । इसमें नगरी श्रावस्ती और उन-उन देवियों के समान उनके माता-पिता के नाम समझ लेने चाहिए ।
( वर्ग-३) [२२६] तीसरे वर्ग का उपोद्घात समझ लेना । हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर यावत् मुक्तिप्राप्त ने तीसरे वर्ग के चौपन अद्ययन कहे हैं । प्रथम अध्ययन यावत् चौपनवाँ अध्ययन । भगवन् ! यदि यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् महावीर ने धर्मकथा के तीसरे वर्ग के चौपन अध्ययन कहे हैं तो भगवन् ! प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान् ने क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । गुणशील चैत्य था । भगवान् पधारे । परिषद् निकली और भगवान् की उपासना करने लगी । उस काल
और उस समय इला देवी धारणी नामक राजधानी में इलावतंसक भवन में, इला नामक सिंहासन पर आसीन थी । काली देवी के समान यावत् नाट्यविधि दिखलाकर लौट गई ।