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________________ ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१८/२१० २२५ वन में घुस गये । वहाँ घुस कर शेष रहे दिन को समाप्त करने लगे-तत्पश्चात् चोरसेनापति चिलात आधी रात के समय, जब सब जगह शान्ति और सुनसान हो गया था, पांच सौ चोरों के साथ, रीछ आदि के बालों से सहित होने के कारण कोमल गोमुखित, छाती से बाँध कर यावत् जांघों पर घूघरे लटका कर राजगृह नगर के पूर्व दिशा के दरवाजे पर पहुँचा । उसने जल की मशक ली । उसमें से जल को एक अंजलि लेकर आचमन किया, स्वच्छ हुआ, पवित्र हुआ, फिर ताला खोलने की विद्या का आवाहन करके राजगृह के द्वार के किवाड़ों पर पानी छिड़का । किवाड़ उघाड़ लिये । तत्पश्चात् राजगृह के भीतर प्रवेश करके ऊँचे-ऊँचे शब्दों से आघोषणा करते-करते इस प्रकार बोला 'देवानुप्रियो ! मैं चिलात नामक चोरसेनापति, पांच सौ चोरों के साथ, सिंहगुफा नामक चोर-पल्ली से, धन्य-सार्थवाह का घर लूटने के लिए यहाँ आया हूँ । जो नवीन माता का दूध पीना चाहता हो, वह निकल कर मेरे सामने आवे ।' इस प्रकार कह कर वह धन्यसार्थवाह के घर आया | आकर उसने धन्य-सार्थवाह का उघाड़ा । धन्य-सार्थवाह ने देखा कि पांच सौ चोरों के साथ चिलात चोरसेनापति के द्वारा घर लूटा जा रहा है । यह देखकर वह भयभीत हो गया, घबरा गया और अपने पांचों पुत्रों के साथ एकान्त में चला गया-छिप गया । तत्पश्चात् चोर सेनापति चिलात ने धन्य-सार्थवाह का घर लूटा । बहुत सारा धन, कनक यावत् स्वापतेय तथा सुसुमा दारिका को लेकर वह राजगृह से बाहर निकल कर जिधर सिंहगुफा थी, उसी ओर जाने के लिए उद्यत हुआ । [२११] चोरों के चले जाने के पश्चात् धन्य-सार्थवाह अपने घर आया । आकर उसने जाना कि मेरा बहुत-सा धन कनक और सुंसुमा लड़की का अपहरण कर लिया गया है । यह जान कर वह बहुमूल्य भेंट लेकर के रक्षकों के पास गया और उनसे कहा-'देवानुप्रियो ! चिलात नामक चोरसेनापति सिंहगुफा नामक चोरपल्ली से यहाँ आकर, पांच सौ चोरों के साथ, मेरा घर लूट कर और बहुत-सा धन, कनक तथा सुसुमा लड़की को लेकर चला गया है । अतएव हम, हे देवानुप्रियो ! सुंसुमा लड़की को वापिस लाने के लिए जाना चाहते हैं । देवानुप्रियो ! जो धन, कनक वापिस मिले वह सब तुम्हारा होगा और सुंसुमा दारिका मेरी रहेगी। तब नगर के रक्षकों ने धन्य-सार्थवाह की यह बात स्वीकार की । वे कवच धारण करके सन्नद्ध हुए । उन्होंने आयुध और प्रहरण लिए । फिर जोर-जोर के उत्कृष्ट सिंहनाद से समुद्र की खलभलाहट जैसा शब्द करते हुए राजगृह से बाहर निकले । निकल कर जहाँ चिलात चोर था, वहाँ पहुँचे, पहुँच कर चिलात चोरसेनापति के साथ युद्ध करने लगे । तब नगररक्षकों ने चोरसेनापति चिलात को हत, मथित करके यावत् पराजित कर दिया। उस समय वे पांच सौ चोर नगररक्षकों द्वारा हत, मथित होकर, और पराजित होकर उस विपुल धन और कनक आदि को छोड़कर और फेंक कर चारों और भाग खड़े हुए । तत्पश्चात् नगररक्षकों ने वह विपुल धन, कनक आदि ग्रहण कर लिया । ग्रहण करके वे जिस ओर राजगृह नगर था, उसी ओर चल पड़े । नगररक्षकों द्वारा चोरसैन्य को हत एवं मथित हुआ देख कर तथा उसके श्रेष्ठ वीर मारे गये, ध्वजा-पताका नष्ट हो गई, प्राण संकट में पड़ गए हैं, सैनिक इधर उधर भाग छूटे हैं, यह देखकर चिलात भयभीत और उद्विग्न हो गया । वह सुंसुमा को लेकर एक महान् अग्रामिक तथा लम्बे मार्ग वाली अटवी में घुस गया । उस समय धन्य 5/15
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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