SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद कहकर फिर दारुक सारथी से कहा - 'हे दूत ! राजनीति में दूत अवध्य है ।' इस प्रकार कहकर सत्कार - सम्मान न करके - अपमान करके, पिछले द्वार से उसे निकाल दिया । वह दारुक सारथि पद्मनाभ राजा के द्वारा असत्कृत हुआ, यावत् पिछले द्वार से निकाल दिया गया, तब कृष्ण वासुदेव के पास पहुँचा । दोनों हाथ जोड़कर कृष्ण वासुदेव से यावत् बोला- 'स्वामिन् ! मैं आपके वचन से राजा पद्मनाभ के पास गया था, इत्यादि पूर्ववत्; यावत् उसने मुझे पिछले द्वार से निकाल दिया' । कृष्ण वासुदेव के दूत को निकलवा देने के पश्चात् इधर पद्मनाभ राजा ने सेनापति को बुलाया और उससे कहा- 'देवानुप्रिय ! अभिषेक किए हुए हस्तिरत्न को तैयार करके लाओ ।' यह आदेश सुनकर कुशल आचार्य के उपदेश से उत्पन्न हुई बुद्धि की कल्पना के विकल्पों से निपुण पुरुषों ने अभिषेक किया हुआ हस्ति उपस्थित किया । वह उज्ज्वल वेष से परिवृत था, सुसज्जित था । पद्मनाभ राजा कवच आदि धारण करके सज्जित हुआ, यावत् अभिषेक किये हाथी पर सवार हुआ । सवार होकर अश्वों, हाथियों आदि की चतुरंगिणी सेना के साथ वहाँ जाने को उद्यत हुआ जहाँ वासुदेव कृष्ण थे । तत्पश्चात् वासुदेव ने पद्मनाभ राजा को आता देखा । वह पांचों पाण्डवों से बोले'अरे बालको ! तुम पद्मनाभ के साथ युद्ध करोगे या युद्ध देखोगे ?' तब पांच पाण्डवों ने कृष्ण वासुदेव से कहा - 'स्वामिन् ! हम युद्ध करेंगे और आप हमारा युद्ध देखिए ।' तत्पश्चात् पांचों पाण्डव तैयार होकर यावत् शस्त्र लेकर रथ पर सवार हुए और जहाँ पद्मनाभ था, वहाँ पहुँचे । 'आज हम हैं या पद्मनाभ राजा है ।' ऐसा कहकर वे युद्ध करने में जुट गये । तत्पश्चात् पद्मनाभ राजा ने उन पांचों पाण्डवों पर शीघ्र ही शस्त्र से प्रहार किया, उनके अहंकार को मथ डाला और उनकी उत्तम चिह्न से चिह्नित पताका गिरा दी । मुश्किल से उनके प्राणों की रक्षा हुई । उसने उन्हें इधर-उधर भगा दिया । तब वे पांचों पाण्डव पद्मनाभ राजा द्वारा शस्त्र से आहत, मथित अहंकार वाले और पतित पताका वाले होकर यावत् पद्मनाभ के द्वारा भगाए हुए, शत्रुसेना का निराकरण करने में असमर्थ होकर, वासुदेव कृष्ण के पास आये । तब वासुदेव कृष्ण ने पांचों पाण्डवों से कहा- 'देवानुप्रियो ! तुम लोग पद्मनाभ राजा के साथ किस प्रकार युद्ध में संलग्न हुए थे ?' तब पांचों पाण्डवों ने कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार कहा'देवानुप्रिय ! हम आपकी आज्ञा पाकर सुसज्जित होकर रथपर आरूढ़ हुए । आरूढ़ होकर पद्मनाभ के सामने गये; इत्यादि सब पूर्ववत् यावत् उसने हमें भगा दिया ।' २१० पाण्डवों का उत्तर सुनकर कृष्ण वासुदेव ने पांचों पाण्डवों से कहा- देवानुप्रियो ! अगर तुम ऐसा बोले होते कि 'हम हैं, पद्मनाभ राजा नहीं' और ऐसा कहकर पद्मनाभ के साथ युद्ध में जुटते तो पद्मनाभ राजा तुम्हारा हनन नहीं कर सकता था । हे देवानुप्रियो ! अब तुम देखना । 'मैं हूँ, पद्मनाभ राजा नहीं' इस प्रकार कह कर मैं पद्मनाभ के साथ युद्ध करता हूँ । इसके बाद कृष्ण वासुदेव रथ पर आरूढ़ हुए । पद्मनाभ राजा के पास पहुँचे । उन्होंने श्वेत, गाय के दूध और मोतियों के हार के समान उज्ज्वल, मल्लिका के फूल, मालती - कुसुम, सिन्दुवार - पुष्प, कुन्दपुष्प और चन्द्रमा के समान श्वेत, अपनी सेना को हर्ष उत्पन्न करने वाला पाञ्चजन्य शंख हाथ में लिया और मुख की वायु से उसे पूर्ण किया । उस शंख के शब्द से पद्मनाभ की सेना का तिहाई भाग हत हो गया, यावत् दिशा-दिशा में भाग गया । उसके बाद कृष्ण वासुदेव ने सारंग नामक धनुष हाथ में लिया । धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई । टंकार की ।
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy