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भगवती-३०/-/१/९९८
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समान है । भगवन् ! मनःपर्यवज्ञानी नैरयिकायुष्य बांधते हैं ? इत्यादि । गौतम ! वे केवल देव का आयुष्य बांधते हैं । भगवन् ! यदि वे देवायुष्य बांधते हैं, तो क्या भवनवासी देवायुष्य बांधते हैं ? गौतम ! वे केवल वैमानिकदेव का आयुष्य बांधते हैं । केवलज्ञानी के विषय में अलेश्यी के समान जानना ।
____ अज्ञानी से लेकर विभंगज्ञानी तक का आयुष्यबन्ध कृष्णपाक्षिक के समान समझना। आहारादि चारों संज्ञाओं वाले जीवों का आयुष्यबन्ध सलेश्य जीवों के समान है । नोसंज्ञोपयुक्त जीवों का आयुष्यबन्ध मनःपर्यवज्ञानी के सदृश है । सवेदी से लेकर नपुंसकवेदी तक सलेश्य जीवों के समान हैं । अवेदी जीवों का आयुष्यबन्ध अलेश्य जीवों के समान है । सकषायी से लेकर लोभकषायी तक को सलेश्य जीवों के समान जानना । अकषायी जीवों के विषय में अलेश्य के समान जानना । सयोगी से लेकर काययोगी तक सलेश्य जीवों के समान समझना । अयोगी जीवों को अलेश्य के समान कहना । साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त को सलेश्य जीवों के समान जानना ।।
[९९९] भगवन् ! क्या क्रियावादी नैरयिक जीव नैरयिकायुष्य बांधते हैं ? गौतम ! वे नारक, तिर्यञ्च और देव का आयुष्य नहीं बांधते, किन्तु मनुष्य का आयुष्य बांधते हैं । भगवन् ! अक्रियावादी नैरयिक जीव नैरयिक का आयुष्य बांधते हैं ? गौतम ! वे नैरयिक और देव का आयुष्य नहीं बांधते, किन्तु तिर्यञ्च और मनुष्य का आयुष्य बांधते हैं । इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी नैरयिक के आयुष्यबन्ध के विषय में समझना चाहिए । भगवन्! क्या सलेश्य क्रियावादी नैरयिक, नैरयिकायुष्य बांधते हैं ? गौतम ! सभी नैरयिक, जो क्रियावादी हैं, वे एकमात्र मनुष्यायुष्य ही बांधते हैं तथा जो अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी नैरयिक हैं, वे सभी स्थानों में तिर्यञ्च और ननुष्य का आयुष्य बांधते हैं । विशेष यह है कि सम्यग्मिथ्यादृष्टि अज्ञानवादी और विनयवादी इन दो समवसरणों में जीवपद के समान किसी भी प्रकार के आयुष्य का बन्ध नहीं करते । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक नैरयिकों के समान जानना । भगवन् ! अक्रियावादी पृथ्वीकायिक जीव नैरयिक का आयुष्य बांधते हैं ? गौतम ! वे तिर्यञ्च और मनुष्य का आयुष्यबन्ध करते हैं । इसी प्रकार अज्ञानवादी (पृथ्वीकायिक) जीवों का आयुष्यबन्ध समझना । भगवन् ! सलेश्य अक्रियावादी पृथ्वीकायिक जीव नैरयिक का आयुष्य बांधते हैं ? गौतम ! जो-जो पद पृथ्वीकायिक जीवों के होते हैं, उन-उन में अक्रियावादी और अज्ञानवादी, इन दो समवसरणों में इसी प्रकार मनुष्य और तिर्यञ्च आयुष्य बांधते हैं । किन्तु तेजोलेश्या में तो किसी भी प्रकार का आयुष्यबन्ध नहीं होता । इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों का आयुष्य-बन्ध जानना । तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव, सभी स्थानों में अक्रियावादी और अज्ञानवादी में, एकमात्र तिर्यञ्च का आयुष्य बांधते हैं । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों का आयुष्यबन्ध पृथ्वीकायिक जीवों के तुल्य है । परन्तु सम्यक्त्व और ज्ञान में वे किसी भी आयुष्य का बन्ध नहीं करते ।
भगवन् ! क्या क्रियावादी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च नैरयिक का आयुष्य बांधते हैं ? गौतम ! इनका आयुष्यबन्ध मनःपर्यवज्ञानी के समान है । अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी चारों प्रकार का आयुष्य बांधते हैं । सलेश्य जीवों का निरूपण औधिक जीव के सदृश है । भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यी क्रियावादी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च नैरयिक का आयुष्य बांधते हैं ? गौतम !