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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद कोई देवकन्या यावत् कोई राजकुमारी भी नहीं है । कुण्डल की जोड़ी से जनित हर्षवाले शंख राजा ने दूत को बुलाया यावत् मिथिला जाने को रवाना हो गया । [९१] उस काल और उस समय में कुरु नामक जनपद था । उसमें हस्तिनापुर नगर था । अदीनशत्रु नामक वहाँ राजा था । यावत् वह विचरता था । उस मिथिला नगरी में कुम्भ राजा का पुत्र, प्रभावती महारानी का आत्मज और मल्ली कुमारी का अनुज मल्लदिन्न नामक कुमार था । वह युवराज था । किसी समय एक बार मल्लदिन्न कुमार ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया । बुलाकर इस प्रकार कहा- 'तुम जाओ और मेरे घर के उद्यान में एक बड़ी चित्रसभा का निर्माण करो, जो सैकड़ों स्तम्भों से युक्त हो, इत्यादि ।' यावत् उन्होंने ऐसा ही करके, चित्रसभा का निर्माण करके आज्ञा वापिस लौटा दी । १४२ तत्पश्चात् मल्लदिन्न कुमार ने चित्रकारों की श्रेणी को बुलाकर कहा- 'देवानुप्रियों ! तुम लोग चित्रसभा को हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से युक्त रूपों से चित्रित करो | चित्रित करके यावत् मेरी आज्ञा वापिस लौटाओ ।' तत्पश्चात् चित्रकारों की श्रेणी ने कुमार की आज्ञा शिरोधार्य की । फिर वे अपने-अपने घर जाकर उन्होंने तूलिकाएँ लीं और रंग लिए । लेकर जहाँ चित्रसभा थी वहाँ आए । चित्रसभा में प्रवेश करके भूकि भागों का विभाजन किया । विभाजन करके अपनी-अपनी भूमि को सज्जित किया तैयार किया - चित्रों के योग्य बनाया । सज्जित करके चित्रसभा में हाव-भाव आदि से युक्त चित्र अंकित करने में लग गये । उन चित्रकारों में से एक चित्रकार की ऐसी चित्रकारलब्धि लब्ध थी, प्राप्त थी और बार-बार उपयोग में आ चुकी थी कि वह जिस किसी द्विपद, चतुष्पद और अपद का एक अवयव भी देख ले तो उस अवयव के अनुसार उसका पूरा चित्र बना सकता था । उस समय एक बार उस लब्धि-सम्पन्न चित्रकारदारक ने यवनिका - पर्दे की ओट में रही हुई मल्ली कुमारी के पैर का अंगूठा जाली में से देका- तत्पश्चात् उस चित्रकारदारक को ऐसा विचार उत्पन्न हुआ, यावत् मल्ली कुमारी के पैर के अंगूठे के अनुसार उसका हूबहू यावत् गुणयुक्त-सुन्दर पूरा चित्र बनाना चाहिए । उसने भूमि के हिस्से को ठीक करके मल्ली के पैर के अंगूठे का अनुसरण करके यावत् उसका पूर्ण चित्र बना दिया । तत्पश्चात् चित्रकारों की उस मण्डली ने चित्रसभा को यावत् हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से चित्रित किया । चित्रित करके जहाँ मल्लूदिन कुमार था, वहाँ गई । जाकर यावत् कुमार की आज्ञा वापिस लौटाई मल्लदिन्न कुमार ने चित्रकारों की मण्डली का सत्कार किया, सम्मान किया, सत्कार - सम्मान करके जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया. दे करके विदा कर दिया । तत्पश्चात् किसी समय मल्लदिन्न कुमार स्नान करके, वस्त्राभूषण धारण करके अन्तःपुर एवं परिवार सहित, धायमाता को साथ लेकर, जहाँ चित्रसभा थी, वहाँ आया । आकर चित्रसभा के भीतर प्रवेश किया । हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से युक्त रूपों को देखता देखता जहाँ विदेह की श्रेष्ठ राजकन्या मल्ली का उसी के अनुरूप चित्र बना था, उसी ओर जाने लगा । उस समय मल्लदिन कुमार ने विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली का, उसके अनुरूप बना हुआ चित्र देखा । उसे विचार उत्पन्न हुआ- 'अरे, यह तो विदेहवह - राजकन्या मल्ली है !' यह विचार आते ही वह लज्जित हो गया, व्रीडित हो गया और व्यर्दित हो गया, अतएव वह पीछे लौट गया ।
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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