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ज्ञाताधर्मकथा-१/-1८/८०
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लगे । तत्पश्चात् वे महाबल प्रभृति सातों अनगार क्षुल्लक सिंहनिष्क्रीडित नामक तपश्चरण अंगीकार करके विचरने लगे । वह तप इस प्रकार किया जाता हैं-सर्वप्रथम एक उपवास करे, उपवास करके सर्वकामगुणित पारणा करे, पारणा करके दो उपवास करे, फिर एक उपवास करे, करके तीन उपवास करे, करके दो उपवास करे, करके चार उपवास करे, करके तीन उपवास करे, करके पाँच उपवास करे, करके चार उपवास करे, करके छह उपवास करे, करके पाँच उपवास करे, करके सात उपवास करे, करके छह उपवास करे, करके आठ उपवास करे, करके सात उपवास करे, करके नौ उपवास करे, करके आठ उपवास करे, करके नौ उपवास करे, करके सात उपवास करे, करके आठ उपवास करे, करके छह उपवास करे, करके सात उपवास करे, करके पाँच उपवास करे करके छह उपवास करे, करके चार उपवास करे, करके पाँच उपवास करे, करके तीन उपवास करे, करके चार उपवास करे, करके दो उपवास करे, करके तीन उपवास करे, करके एक उपवास करे, करके दो उपवास करे, करके एक उपवास करे । सब जगह पारणा के दिन सर्वकामगुणित पारणा करके उपवासों का पारणा समझना चाहिए ।
इस प्रकार इस क्षुल्लक सिंहनिष्क्रीडित तप की पहली परिपाटी छह मास और सात अहोरात्रों मैं सूत्र के अनुसार यावत् आराधित होती हैं । तत्पश्चात् दूसरी परिपाटी में एक उपवास करते हैं, इत्यादि विशेषता यह है कि इसमें विकृति रहित पारणा करते हैं, इसी प्रकार तीसरी परिपाटी । विशेषता यह है कि अलेपकृत से पारणा करते हैं । चौथी परिपाटी में भी ऐसा ही करते हैं किन्तु उसमें आयंबिल से पारणा की जाती है ।
तत्पश्चात् महाबल आदि सातों अनगार क्षुल्लक सिंहनिष्क्रीड़ित तप को दो वर्ष और अट्ठाईस अहोरात्र मे, सूत्र के कथनानुसार यावत् तीर्थकर की आज्ञा से आराधन करके, जहाँ स्थविर भगवान थे, वहाँ आये । आकर उन्होंने वन्दना की, नमस्कार किया । वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार बोले-'भगवन् ! हम महत् सिंहनिष्क्रीड़ित नामक तपःकर्म करना चाहते हैं आदि' । यह तप क्षुल्लक सिंहनिष्क्रीड़ित तप के समान जानना । विशेषता यह कि इसमें सोलह उपवास तर पहुँचकर वापिस लौटा जाता हैं । एक परिपाटी एक वर्ष, छह मास और अठारह अहोरात्र में समाप्त होती है । सम्पूर्ण महासिहनिष्क्रीड़ित तप छह वर्ष, दो मास और बारह अहोरात्र में पूर्ण होता है । तत्पश्चात् वे महाबल प्रभृति सातों मुनि महासिंहनिष्क्रीड़ित तपःकर्म का सूत्र के अनुसार यावत् आराधन करके जहाँ स्थविर भगवान् थे वहाँ आते हैं । स्थविर भगवान् को क्न्दना और नमस्कार करते हैं । बहुत से उपवास, तेला आदि करते हुए विचरते हैं ।
तत्पश्चात् वे महाबल प्रभृति अनगार उस प्रधान तप के कारण शुष्क रूक्ष हो गये, स्कंदक मुनि समान-जानना । विशेषता यह इन सात मुनियों ने स्थविर भगवान् से आज्ञा ली। आज्ञा लेकर चारु पर्वत पर आरूढ़ होरक यावत् दो मास की संलेखना करके-एक सौ बीस भक्त का अनशन करके, चौरासी लाख वर्षों तक संयम का पालन करके, चौरासी लाख पूर्व का कुल आयुष्य भोगकर जयंत नामक तीसरे अनुत्तर विमान में देव-पर्याय से उत्पन्न हुए ।
[८१] उस जयन्त विमान में कितनेक देवों की बत्तीस सागरोपम की स्थिति कही गई है । उनमें से महाबल को छोड़कर दूसरे छह देवों की कुछ कम बत्तीस सागरोपम की स्थिति
और महाबल देव की पूर बत्तीस सागरोपम की स्थिति हुई । तत्पश्चात् महाबल देव के सिवाय छहों देव जयन्त देवलोक से, देव संबन्धी आयु का क्षय होने से, स्थिति का क्षय होने से और