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________________ ज्ञाताधर्मकथा-१/-1८/७६ १२९ (अध्ययन-८-'मल्ली' [७६] 'भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने सातमें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो आठवें अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?' 'हे जम्बू ! उस काल और उस समय में, इसी जम्बूद्वीप में महाविदेह नामक वर्ष में, मेरुपर्वत से पश्चिम में, निषध नामक वर्षधर पर्वत से उत्तर में, शीतोदा महानदी से दक्षिण में, सुखावह नामक वक्षार पर्वत से पश्चिम में और पश्चिम लवणसमुद्र से पूर्व में-इस स्थान पर, सलिलावती नामक विजय है । उस में वीतशोका नामक राजधानी है । वह नौ योजन चौड़ी, यावत् साक्षात् देवलोक के समान थी। उस वीतशोका राजधानी के ईशान दिशा के भाग में इन्द्रकुम्भ उद्यान था । बल नामक राजा था । बल राजा के अन्तःपुर में धारिणी प्रभृति एक हजार देवियाँ थीं । वह धारिणी देवी किसी समय स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हुए । यावत् यथासमय महाबल नामक पुत्र का जन्म हुआ । वह बालक क्रमशः बाल्यावस्था को पार कर भोग भोगने में समर्थ हो गया । तब माता-पिता ने समान रूप एवं वय वाली कमलश्री आदि पांच सौ श्रेष्ठ राजकुमारियों के साथ, एक ही दिन में महाबल का पाणिग्रहण कराया । पाँच सौ प्रासाद आदि पाँच-पाँच सौ का दहेज दिया । यावत् महाबल कुमार मनुष्य संबन्धी कामभोग भोगता हुआ रहने लगा । उस काल और उस समय में धर्मघोषनामक स्थविर पाँच सौ शिष्यों से परिवृत होकर अनुक्रम से विचरते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम गमन करते हुए, सुखे-सुखे विहार करते हुए इन्द्रकुम्भ उद्यान, पधारे और संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए वहाँ ठहरे । स्थविर मुनिराज को वन्दना करने के लिए जनसमूह निकला । बल राजा भी निकला। धर्म सुनकर राजा को वैराग्य उत्पन्न हुआ । विशेष यह कि उनसे महाबल कुमार को राज्य पर प्रतिष्ठित किया । प्रतिष्ठित करके स्वयं ही बल राजा ने आकर स्थविर के निकट प्रव्रज्या अंगीकार की । वह ग्याहर अंगों के वेत्ता हुए । बहुत वर्षों तक संयम पाल कर चारुपर्वत गये। एक मास का निर्जल अनशन करके केवलज्ञान प्राप्त करके यावत् सिद्ध हुए । तत्पश्चात् अन्यदा कदाचित् कमलश्री स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हुआ । बलभद्र कुमार का जन्म हुआ । वह युवराज भी हो गया । उस महाबल राजा के छह राजा बालमित्र थे । अचल धरण पूरण वसु वैश्रमण अभिचन्द्र । वे साथ ही जन्मे थे, साथ ही वृद्धि को प्राप्त हुए थे, साथ री धूल में खेले थे, साथ ही विवाहित हुए थे, एक दूसरे पर अनगार रखते थे, अनुसरण करते थे, अभिप्राय का आदर करते थे, हृदय की अभिलाषा के अनुसार कार्य करते थे, एक-दूसरे के राज्यों में काम-काज करते हुए रह रहे थे । एक बार किसी समय वे सब राजा इकट्ठे हुए, एक जगह मिले, एक स्थान पर आसीन हुए । तब उनमें इस प्रकार का वार्तालाप हुआ-'देवानुप्रिय ! जब कभी हमारे लिए सुख का, दुःख का, दीक्षा का अथवा विदेशगमन का प्रसंग उपस्थित हो तो हमें सभी अवसरों पर साथ ही रहना चाहिए । साथ ही आत्मो का निस्तार करना-आत्मा को संसार सागर से तारना चाहिए, ऐसा निर्णय करके परस्पर में इस अर्थ को अंगीकार किया था । वे सुखपूर्वक रह रहे थे । उस काल और उस समय में धर्मघोष नामक स्थविर जहां इन्द्रकुम्भ उद्यान था, वहाँ पधारे । परिषद् वंदना करने के लिए निकली । महाबल राजा भी निकला । स्थविर महाराज
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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