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भगवती - १३/-/२/५६७
हैं, यथा - भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक ।
भगवन् ! भवनवासी देव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दस प्रकार के यथाअसुरकुमार यावत् स्तनितकुमार । इस प्रकार भवनवासी आदि देवों के भेदों का वर्णन द्वितीय शतक के सप्तम देवोद्देशक के अनुसार यावत् सर्वार्थसिद्ध तक जानना ।
भगवन् ! असुरकुमार देवों के कितने लाख आवास हैं ? गौतम ! चौसठ लाख । भगवन् ! असुरकुमार देवों के आवास वे संख्यात योजन विस्ताखाले हैं या असंख्यात योजन विस्तारवाले हैं ? गौतम ! (वे) संख्यात योजन विस्तार वाले भी हैं और असंख्यात योजन विस्तारवाले भी हैं । भगवन् ! असुरकुमारों के चौसठ लाख आवासों में से संख्यात योजन विस्तारवाले असुकुमारावासों में एक समय में कितने असुरकुमार उत्पन्न होते हैं, यावत् कितने तेजोलेश्यी उत्पन्न होते हैं ? ( गौतम !) रत्नप्रभापृथ्वी के प्रश्नोत्तर समान यहां भी उसी प्रकार समझ लेना । विशेष यह है कि यहाँ दो वेदों सहित उत्पन्न होते हैं, नपुंसकवेदी उत्पन्न नहीं होते । शेष पूर्ववत् । उद्धर्त्तना के विषय में भी उसी प्रकार जानना । विशेषता यह है कि असंज्ञी भी उद्वर्त्तना करते हैं । अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी उद्वर्त्तना नहीं करते । शेष पूर्ववत् । सत्ता के विषय में प्रथमोद्देशक अनुसार कहना । किन्तु विशेष यह है कि वहाँ संख्यात स्त्रीवेदक हैं और संख्यात पुरुषवेदक हैं, नपुंसकवेदक नहीं हैं । क्रोधकषायी कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात होते हैं । इसी प्रकार मानकषायी और मायाकषायी के विषय में कहना । लोभकषायी संख्यात कहे गए हैं । शेष कथन पूर्ववत् । ( संख्यात विस्तृत आवासों में) उत्पाद, उद्वर्त्तना और सत्ता, इन तीनों के आलापकों में चार श्याएँ कहना । असंख्यात योजन विस्तारवाले असुरकुमारवासों के विषय में भी इसी प्रकार कहना । विशेषता इतनी ही है कि पूर्वोक्त तीनों आलापकों में 'असंख्यात' कहना तथा 'असंख्यात अचरम कहे गए हैं,' यहाँ तक कहना ।
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नागकुमार देवों के कितने लाख आवास कहे गए हैं ? (गौतम !) पूर्वोक्त रूप से (नागकुमार से लेकर) स्तनितकुमार तक (उसी प्रकार ) कहना चाहिए । विशेष इतना है कि जहाँ जितने लाख भवन हों, वहाँ उतने लाख भवन कहने चाहिए ।
भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों के कितने लाख आवास कहे गये हैं ? गौतम ! असंख्यात लाख आवास । भगवन् ! वे संख्येय विस्तृत हैं अथवा असंख्येय ? गौतम ! वे संख्येय विस्तृत हैं, असंख्येयविस्तृत नहीं हैं । भगवन् ! वाणव्यन्तरदेवों के संख्येय विस्तृत आवासों में एक समय में कितने वाणव्यन्तर देव उत्पन्न होते हैं । ( गौतम !) असुरकुमार देवों के संख्येय विस्तृत आवासों के समान वाणव्यन्तर देवों के भी तीनों आलापक कहने चाहिए । भगवन् ! ज्योतिष्कदेवों के कितने लाख विमानावास हैं ? गौतम ! असंख्यात लाख । भगवन् ! वे संख्येय विस्तृत हैं या असंख्येय ? गौतम ! संख्येय विस्तृत होते हैं । तथा वाणव्यन्तरदेवों के समान ज्योतिष्कदेवों के विषय में तीन आलापक कहना । विशेषता यह है कि इनमें केवल एक तेजोलेश्या ही होती है । व्यन्तरदेवों में असंज्ञी उत्पन्न होते हैं, ऐसा कहा गया था, किन्तु इनमें असंज्ञी उत्पन्न नहीं होते (न ही उद्वर्त्तते हैं और न च्यवते हैं) । शेष पूर्ववत् ।
भगवन् ! सौधर्मकल्प में कितने लाख विमानावास हैं ? गौतम ! बत्तीस लाख । भगवन् ! वे विमानावास संख्ये विस्तृत हैं या असंख्येय विस्तृत ? गौतम ! वे संख्येय विस्तृत भी हैं और