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भगवती-२५/-/७/९४३
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गौतम ! वह जघन्य अष्ट प्रवचनमाता का और उत्कृष्ट चौदहपूर्व तक का अध्ययन करता है अथवा वह श्रुतव्यतिरिक्त (केवली) होता है ।
__ भगवन् ! सामायिकसंयत तीर्थ में होता है अथवा अतीर्थ में होता है ? गौतम ! वह तीर्थ में भी होता है और अतीर्थ में भी, इत्यादि कषायकुशील के समान कहना चाहिए । छेदोपस्थापनीय और परिहारविशुद्धिकसंयत पुलाक समान जानना । शेष सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत को सामायिकसंयत समान जानना ।
__ भगवन् ! सामायिकसंयत स्वलिंग में होता है, अन्य लिंग में या गृहस्थलिंग में होता है ? गौतम ! इसका सभी कथन पुलाक के समान जानना । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी जानना । भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत ? गौतम ! वह द्रव्यलिंग और भावलिंग की अपेक्षा स्वलिंग में ही होता ह । शेष कथन सामायिकसंयत समान जानना ।
भगवन् ! सामायिकसंयत कितने शरीरों में होता है ? गौतम ! तीन, चार या पांच शरीरों में होता है, इत्यादि कषायकुशील समान जानना । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी जानना । शेष तीनो का शरीर-विषयक कथन पुलाक के समान जानना ।
__ भगवन् ! सामायिकसंयत कर्मभूमि में होता है या अकर्मभूमि में ? गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा से वह कर्मभूमि में होता है, इत्यादि बकुश के समान जानना । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत का कथन है । परिहारविशुद्धिकसंयत को पुलाक के समान जानना । (सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत) को सामायिकसंयत के समान जानना ।
[९४४] भगवन् ! सामायिकसंयत अवसर्पिणीकाल में होता है, उत्सर्पिणीकाल में होता है, या नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में होता है ? गौतम ! वह अवसर्पिणीकाल में होता है, इत्यादि सब कथन बकुश के समान है । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी समझना । विशेष यह कि जन्म और सद्भाव की अपेक्षा चारों पलिभागों में नहीं होता, संहरण की अपेक्षा किसी भी पालिभाग में होता है । भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत ? गौतम ! वह अवसर्पिणीकाल में होता है, उत्सर्पिणीकाल में भी होता है, किन्तु नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में नहीं होता । यदि अवसर्पिणी या उत्सर्पिणीकाल में होता है, तो पुलाक के समान होता है । सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यात को निर्ग्रन्थ के समान समझना ।
[९४५] भगवन् ! सामायिकसंयत काल कर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में । भगवन् ! वह देवगति में जाता हुआ भवनवासी यावत् वैमानिकों में से किन देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह कषायकुशील के समान भवनपति में उत्पन्न नहीं होता, इत्यादि सब कहना । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी समझना । परिहारविशुद्धिकसंयत की गति पुलाक के समान जानना । सूक्ष्मसम्परायसंयत की गति निर्ग्रन्थ के समान जानना चाहिए । भगवन् ! यथाख्यातसंयत कालधर्म प्राप्त कर किस गति में जाता है ? गौतम ! अजघन्यानुत्कृष्ट अनुत्तरविमान में उत्पन्न होता है और कोई सिद्ध होकर है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है ।
___भगवन् ! देवलोकों में उत्पन्न होता हुआ सामायिकसंयत क्या इन्द्ररूप से उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! अविराधना की अपेक्षा कषायकुशील के समान जानना । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को जानना । परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन पुलाक के समान जानना चाहिए । शेष (सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत) को निर्ग्रन्थ समान जानना ।