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भगवती-२५/-/४/८८४
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श्रुतअज्ञान एवं विभंगज्ञान के पर्यायों का भी कथन करना चाहिए । चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन
और अवधिदर्शन के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए, किन्तु जिसमें जो पाया जाता है, वह कहना । केवलदर्शन के पर्यायों का कथन केवलज्ञान के पर्यायों के समान ।
[८८५] भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के औदारिक, वैक्रिय, यावत् कार्मणशरीर । यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का शरीरपद समग्र कहना चाहिए ।
[८८६] भगवन् ! जीव सैज (सकम्प) हैं अथवा निरेज (निष्कम्प) हैं ? गौतम ! जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे हैं यथा-संसार-समापन्नक और असंसार-समापन्नक । उनमें से जो असंसार-समापनक हैं, वे सिद्ध जीव हैं । सिद्ध जीव दो प्रकार के कहे हैं । यथा-अनन्तरसिद्ध और परम्पर-सिद्ध । जो परम्पर-सिद्ध हैं, वे निष्कम्प हैं, और जो अनन्तर-सिद्ध है, वे सकम्प हैं । भगवन् ! वे देशकम्पक हैं य सर्व-कम्पक हैं ? गौतम ! वे देशकम्पक नहीं, सर्वकम्पक हैं । जो संसार-समापन्नक जीव हैं, वे दो प्रकार के कहे हैं । यथा-शैलेशी-प्रतिपन्नक और अशैलेशी-प्रतिपन्नक । जो शैलेशी-प्रतिपन्नक हैं, वे निष्कम्प हैं, किन्तु जो अशैलेशीप्रतिपन्नक हैं, वे सकम्प हैं । भगवन् ! वे देशकम्पक हैं या सर्वकम्पक ? गौतम ! वे देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं ? इस कारण से हे गौतम ! यावत् वे निष्कम्प भी हैं।
भगवन् ! नैरयिक देशकम्पक हैं या सर्वकम्पक हैं ? गौतम ! वे देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे हैं । यथा-विग्रहगति-समापन्नक और अविग्रहगति-समापन्नक । उनमें से जो विग्रहगतिसमापन्नक हैं, वे सर्वकम्पक हैं और जो अविग्रहगति-समापनक हैं, वे देशकम्पक हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिए ।
[८८७] भगवन् ! परमाणु-पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं, किन्तु अनन्त हैं । इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना । भगवन् ! आकाश के एक प्रदेश में रहे हुए पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! अनन्त हैं । इसी प्रकार यावत् असंख्येय प्रदेशों में रहे हुए पुद्गलों तक जानना चाहिए । भगवन् ! एक समय की स्थिति वाले पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार यावत् असंख्यात-समय की स्थिति वाले पुद्गलों के विषय में भी कहना चाहिए ।
भगवन् ! एकगुण काले पुद्गल संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों के विषय में जानना । इसी प्रकार शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले पुद्गलों के विषय में भी अनन्तगुण रूक्ष पर्यन्त जानना ।
भगवन् ! परमाणु-पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! द्विप्रदेशी स्कन्धों से परमाणु पुद्गल द्रव्यार्थ से बहुत हैं। भगवन् ! द्विप्रदेशी और त्रिप्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध से द्विप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं । इस गमक अनुसार यावत् दशप्रदेशी स्कन्धों से नवप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं । भगवन् ! दशप्रदेशी स्कन्धों और संख्यातप्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ से कौन किससे विशेषाधिक हैं ? गौतम !