________________
भगवती-२५/-/३/८७५
२६१
गौतम ! वे सादि-सपर्यवसित हैं, इसी प्रकार यावत् ऊर्ध्व और अधो लंबी लोकाकाश-श्रेणियों के विषय में समझना चाहिए । भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ सादि-सपर्यवसित हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! वे कदाचित् सादि-सपर्यवसित हैं, कदाचित् सादि-अपर्यवसित हैं, कदाचित् अनादि-सपर्यवसित हैं और कदाचित् अनादि-सपर्यवसित हैं । पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा दक्षिण-उत्तर लम्बी अलोकाकाश-श्रेणियाँ भी इसी प्रकार है विशेषता यह है कि ये सादिसपर्यवसित नहीं हैं और कदाचित् सादिअपर्यवसित हैं । शेष पूर्ववत् । ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणियों के औधिक श्रेणियों के समान चार भंग जानने चाहिए ।।
भगवन् ! आकाश की श्रेणियाँ द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म हैं, त्र्योज हैं, द्वापरयुग्म हैं अथवा कल्योज हैं ? गौतम ! वे कृतयुग्म हैं, किन्तु न तो त्र्योज हैं, न द्वापरयुग्म हैं और न ही कल्योज हैं । इसी प्रकार ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणियों तक के विषय में कहना । लोकाकाश की श्रेणियाँ एवं अलोकाकाश की श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए ।
भगवन् ! आकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न । पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणियों तक के विषय में कहना चाहिए ।
भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे कदाचित् कृतयुग्म हैं और कदाचित् द्वापरयुग्म हैं, किन्तु न तो त्र्योज हैं और न कल्योज ही हैं । इसी प्रकार पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा दक्षिण-उत्तर लम्बी लोकाकाश की श्रेणियों के विषय में भी समझना । भगवन् ! ऊर्ध्व और अधो लम्बी लोकाकाश की श्रेणियाँ कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे कृतयुग्म हैं, किन्तु न तो त्र्योज हैं, न द्वापरयुग्म हैं और न ही कल्योज हैं । भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि । गौतम ! वे कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं । इसी प्रकार पूर्वपश्चिम तथा दक्षिण-उत्तर लम्बी श्रेणिया जानो । ऊर्ध्व और अधो लम्बी अलोकाकाश श्रेणियाँ भी इसी प्रकार हैं किन्तु वे कल्योज रूप नहीं हैं, शेष पूर्ववत् ।।
[८७६] भगवन् ! श्रेणियाँ कितनी कही हैं ? गौतम ! सात यथा-ऋज्वायता, एकतोवक्रा, उभयतोवक्रा, एकतःखा, उभयतःखा, चक्रवाल और अर्द्धचक्रवाल ।
भगवन् ! परमाणु-पुद्गलों की गति अनुश्रेणि होती है या विश्रेणि ? गौतम ! परमाणुपुद्गलों की गति अनुश्रेणी होती है, विश्रेणि गति नहीं होती । भंते ! द्विप्रदेशिक स्कन्धों की गति अनुश्रेणि होती है या विश्रेणि ? पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् अनन्त-प्रदेशिक स्कन्धपर्यन्त जानना ! भगवन् ! नैरयिकों की गति अनुश्रेणि होती है या विश्रेणि ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार वैमानिक-पर्यन्त जानना ।
[८७७] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे हैं ? गौतम ! तीस लाख इत्यादि प्रथम शतक के पांचवें उद्देशक अनुसार यावत् अनुत्तर-विमान तक जानना ।
[८७८] भगवन् ! गणिपिटक कितने प्रकार का है ? गौतम ! बारह-अंगरूप है । यथा-आचारांग यावत् दृष्टिवाद । भगवन् ! आचारांग किसे कहते हैं ? आचारांग-सूत्र में श्रमण-निर्ग्रन्थों के आचार, गोचर-विधि आदि चारित्र-धर्म की प्ररूपणा की गई है । नन्दीसूत्र के अनुसार सभी अंग-सूत्रों का वर्णन जानना चाहिए, यावत्
[८७९] सर्वप्रथम सूत्र का अर्थ । दूसरे में नियुक्तिमिश्रित अर्थ और फिर तीसरे में