________________
२४२
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च-सम्बन्धी नवम गमक की वक्तव्यती के अनुसार कालादेश तक कहनी चाहिए । पस्तु परिमाण इसके तीसरे गमक अनुसार कहना |
यदि वे (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च), संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से आ कर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आ कर उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं । असंख्यात से नहीं | भगवन् ! यदि वे संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त से ? गौतम ! वे दोनों से आकर उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! यदि संख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक कितने काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले ।
भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । (गौतम !) रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने वाले इस संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च के प्रथम गमक के समान सब वक्तव्यता कहनी चाहिए । परन्तु इसकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन की होती है । शेष कथन भवादेश तक पर्ववत जानना । काल की अपेक्षा से-जघन्य दो अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम, यावत् इतने काल गमनागमन करता है । यदि वही जीव, जघन्य काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्प्न हो, तो वही पूर्वोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष कालादेश सेजघन्य दो अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तमुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि ।
यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्ववत् परिमाण में विशेष यह है कि वह जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं | अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट एक हजार योजन की होती है | शेष पूर्ववत् यावत् अनुबन्ध तक जानना । भवादेश से दो भव और कालादेश से-जघन्य अन्तमुहर्त अधिक तीन पल्योपम और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-अधिक तीन पल्योपम । यदि वह, स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और उत्पन्न हो, तो वह जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-वर्ष की स्थितिवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यश्चयोनिकों में उत्पन्न होता है । इस विषय में पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले इसी संज्ञी पंचेन्द्रिय के अनुसार मध्य के तीन गमक तथा पंचेन्द्रिय-तिर्यश्च में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय के बीच के तीन गमकों में जो संवेध कहा है, तदनुसार कहना चाहिए । यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो, तो उसके विषय में प्रथम गमक के समान कहना । परन्तु विशेष यह है कि स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष कहना । कालादेश से-जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम ।
___ यदि वही (उत्कृष्ट स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) जघन्य काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष यह है कि कालादेश से-जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार अन्तमुहूर्त