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भगवती-२४/-/१२/८४८
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भगवन ! यदि वे (पृथ्वीकायिक) ज्योतिष्क देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे चन्द्रविमान-ज्योतिष्क देवों से अथवा यावत् ताराविमान-ज्योतिष्क देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे चन्द्रविमान-ज्योतिष्क देवों यावत् ताराविमान-ज्योतिष्कदेवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! ज्योतिष्क देव जो पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होनो योग्य हैं, वे कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) इनके विषय में उत्पत्ति-परिमाणादि की लब्धि असुरकुमारों के समान जानना चाहिए । विशेषता यह है कि इनके एकमात्र तेजोलेश्या होती है । इनमें तीन ज्ञान और तीन अज्ञान नियम से होते हैं । स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की होती है । अनुबन्ध भी इसी प्रकार जानना चाहिए । (संवेध) काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक पल्योपम का आठवाँ भाग और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम तथा एक लाख वर्ष, इतने काल तक गमनागमन करता है । इसी प्रकार शेष आठ गमक भी कहने चाहिए । विशेष यह है कि स्थिति और कालादेश (भिन्न) समझने चाहिए ।
भगवन् ! यदि वे, वैमानिकदेवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे कल्पोपपन्न वैमानिकदेवों से आकर उत्पन्न होते हैं अथवा कल्पातीत से ? गौतम ! वे कल्पोपपन्न वैमानिकदेवों से आकर उत्पन्न होते हैं, कल्पातीत से नहीं । (भगवन् !) यदि वे कल्पोपन्न वैमानिकदेवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे सौधर्म-कल्पोपन्न वैमानिकदेवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् अच्युत से ? गौतम ! वे सौधर्म- तथा ईशान-कल्पोपपन्न वैमानिकदेवों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु सनत्कुमार-वैमानिकदेवों यावत् अच्युत-कल्पोपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते । भगवन् ! सौधर्मकल्पोपपन्न वैमानिक देव, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होता है ? गौतम ! ज्योतिष्क देवों के गमक के समान कहना । विशेषता यह है कि इनकी स्थिति और अनुबन्ध जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट दो सागरोपम है । (संवेध) कालादेश से जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक एक पल्योपम और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष अधिक दो सागरोपम । इसी प्रकार शेष आठ गमक भी जानना । विशेष यह है कि यहाँ स्थिति और कालादेश (भिन्न) है ।
___भगवन् ! ईशानदेव, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उसकी उत्पत्ति होती है ? (गौतम !) इस सम्बन्ध में पूर्वोक्त नौ ही गमक इसी प्रकार कहना चाहिए । विशेष यह है कि स्थिति और अनुबन्ध जघन्य सातिरेक एक पल्योपम और उत्कृष्ट सातिरेक दो सागरोपम होता है । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-२४ उद्देशक-१३ | [८४९] भगवन् ! अप्कायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं । पृथ्वीकायिकउद्देशक अनुसार कहना । यावत् भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले अप्कायिक में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त की और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की । इस प्रकार यह समग्र उद्देशक पृथ्वीकायिक के समान है । विशेष यह है कि इसकी स्थिति और संवेध जान लेना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।