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________________ भगवती-२४/-/१२/८४७ २३३ काययोगी होते हैं । दो उपयोग, चार संज्ञाएँ और चार कषाय होते हैं । जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय, ये दो इन्द्रियाँ होती हैं । तीन समुद्घात होते हैं । शेष पृथ्वीकायिकों के समान जाननी चाहिए । विशेष-उनकी स्थिति जघन्य अन्तमुहर्त की और उत्कृष्ट बारह वर्ष की होती है । अनुबन्ध भी इसी प्रकार होता है । भव की अपेक्षा से वे जघन्य दो भव और उत्कृष्ट संख्यात भव ग्रहण करते हैं । काल की अपेक्षा से जघन्य दो अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात काल तक। यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो पूर्वोक्त सभी वक्तव्यता समझना । यदि वह, उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले पृत्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो भी पूर्वोक्त वक्तव्यता कहना । विशेष यह है कि भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है । काल की अपेक्षा से-जघन्य अन्तमुहर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट ४८ वर्ष अधिक ८८,००० वर्ष तक । यदि वह (द्वीन्द्रिय) स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न हो, तो उसके भी तीनों गमकों में पूर्वोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिए । परन्तु विशेष यहाँ सात भेद हैं । यथा-शरीर की अवगाहना पृथ्वीकायिकों के समान वह मिथ्यादृष्टि होता है, इसमें दो अज्ञान नियम से होते हैं, वह काययोगी होता है, उसकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तमुहूर्त की होती है, अध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं और अनुबन्ध स्थिति के अनुसार होता है । दूसरे त्रिक के पहले के दो गमकों से संवेध भी इसी प्रकार समझना चाहिए । छठे गमक में भवादेश भी उसी प्रकार आठ भव जानने चाहिए । कालादेश-जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तमुहर्त अधिक ८८,००० वर्ष तक गमनागमन करता है । यदि वह, स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो उनके भी तीनों गमक औधिक गमकों के समान कहने चाहिए । विशेष यह है कि इन तीनों गमकों में स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट बारह वर्ष की होती है । अनुबन्ध भी इसी प्रकार समझना । भव की अपेक्षा से-जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है । काल की अपेक्षा से-विचार करके संवेध कहना चाहिए, यावत् नौवें गमक में जघन्य बारह वर्ष अधिक २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट ४८ वर्ष अधिक ८८,००० वर्ष, इतने काल तक गमनागमन करता है । यदि वह पृथ्वीकायिक त्रीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होता हो, तो? इत्यादि प्रश्न । यहाँ भी इसी प्रकार नौ गमक कहना चाहिए । प्रथम के तीन गमकों में शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है । तीन इन्द्रियाँ होती हैं । स्थिति जघन्य अन्तमुहर्त की और उत्कृष्ट ४९ अहोरात्र की होती है । तृतीय गमक में काल की अपेक्षा जघन्य अन्तमुहूर्त अधिक, २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट १९६ अहोरात्र अधिक ८८,००० वर्ष, इतने काल तक गमनागमन करता है। बीच के तीन गमकों और अन्तिम तीन गमकों की वक्तव्यता भी पूर्ववत् जानना चाहिए । विशेष यह है कि स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट ४९ रात्रि-दिवस की होती है । इनका संवेध उपयोगपूर्वक कहना । (भगवन् !) यदि वे पृथ्वीकायिक जीव चतुरिन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों, तो ? इत्यादि प्रश्न । चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी इसी प्रकार नौ गमक कहने चाहिए । विशेष यह है कि इन स्थानों में नानात्व कहना चाहिए इनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चार गाऊ की होती है । स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त की और
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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