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भगवती - २४/-/१/८३८
अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग ।
भगवन् ! उत्कृष्टकाल की स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञीपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जो जीव जघन्यकाल की स्थिति वाले रत्नप्रभा के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एकसमय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! सप्तम गमन के अनुसार अनुबन्ध तक ( जानना चाहिए ।) भगवन् ! जो जीव उत्कृष्टकाल की स्थिति वाला यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक हो, फिर वह जघन्यकाल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों यावत् गमनागमन करता है ? गौतम ! वह भवादेश से दो भव ग्रहण करता है तथा कालादेश से जघन्य और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष; इतने काल तक गमनागमन करता है । भगवन् ! उत्कृष्टकाल की स्थिति वाला पर्याप्त० यावत् तिर्यञ्चयोनिक जो जीव, रत्नप्रभापृथ्वी के उत्कृष्टस्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो तो भगवन् ! वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले और उत्कृष्ट भी पल्योपम के असंख्यातवें भीग की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् यावत् (अनुबन्ध तक) समझने चाहिए ।
भगवन् ! वह जीव, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्त यावत् तिर्यञ्चयोनिक हो, फिर वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में गमनागमन करता है ? गौतम ! भवादेश से वह दो भव ग्रहण करता है तथा कालादेश से जघन्य पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग, इतना काल सेवन यावत् गमनागमन करता है । इस प्रकार ये तीन गमक औधिक हैं, तीन गमक जघन्यकाल की स्थिति वालों में उत्पत्ति के हैं और तीन गमक उत्कृष्टकाल की स्थिति वालों में उत्पत्ति) के हैं । ये सब मिला कर नौ गमक होते हैं ।
[८३९] भगवन् ! यदि नैरयिक संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - पंचेन्द्रियतर्यिञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वाले उत्पन्न नहीं होते हैं । भगवन् ! यदि नैरियक संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी - तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे जलचरों स्थलचरों अथवा खेचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जलचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि सब असंज्ञी के समान, यावत् पर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तकों में से नहीं; भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क-संज्ञीपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जो जीव, नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितनी नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह सातों ही नरकपृथ्वीयों में उत्पन्न होता है, यथा-रत्नप्रभा, यावत् अधः सप्तम पृथ्वी ।
भगवन् ! पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, जो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों
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