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भगवती-११/-/३/५००
| शतक-११ उद्देशक-३ | [५००] भगवन् ! पलाशवृक्ष एक पत्ते वाला (होता है, तब वह) एक जीव वाला होता है या अनेक जीव वाला ? गौतम ! उत्पल-उद्देशक की सारी वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष इतना है कि पलाश के शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग हैं और उत्कृष्ट गव्यूति-पृथक्त्व है । देव च्यव कर पलाशवृक्ष में उत्पन्न नहीं होते । -भगवन् ! वे जीव क्या कृष्णलेश्या वाले होते हैं, नीललेश्या वाले होते हैं या कापोतलेश्या वाले होते हैं ? गौतम ! वे तीनो लेश्या वाले होते हैं । इस प्रकार यहाँ उच्छ्वासक द्वार के समान २६ भंग होते हैं । शेष सब पूर्ववत् है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।'
| शतक-११ उद्देशक-४ [५०१] भगवन् ! एक पत्ते वाला कुम्भिक एक जीव वाला होता है या अनेक जीव वाला ? गौतम ! पलाश (जीव) के समान कहना । इतना विशेष है कि कुम्भिक की स्थिति जघन्य अन्तमुहर्त की और उत्कृष्ट वर्ष-पृथक्त्व की है । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-११ उद्देशक-५ [५०२] भगवन् ! एक पत्तेवाला नालिक, एक जीव वाला है या अनेक जीववाला ? गौतम ! कुम्भिक उद्देशक अनुसार कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-११ उद्देशक-६ । [५०३] भगवन् ! एक पत्र वाला पद्म, एक जीव वाला होता है या अनेक जीव वाला होता है ? गौतम ! उत्पल-उद्देशक के अनुसार इसकी सारी वक्तव्यता कहनी चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
| शतक-११ उद्देशक-७ । [५०४] भगवन् ! एक पत्ते वाली कर्णिका एक जीववाली है या अनेक जीववाली है ? गौतम ! इसका समग्र वर्णन उत्पलउद्देशक के समान करना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक-११ उद्देशक-८ [५०५] भगवन् ! एक पत्ते वाला नलिन एक जीव वाला होता है, या अनेक जीववाला ? गौतम ! इसका समग्र वर्णन उत्पल उद्देशक के समान करना चाहिए और सभी जीव अनन्त वार उत्पन्न हो चुके हैं, यहाँ तक कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-११ उद्देशक-९ [५०६] उस काल और उस समय में हस्तिनापुर नाम का नगर था । उस हस्तिनापुर नगर के बाहर ईशानकोण में सहस्त्राम्रवन नामक उद्यान था । वह सभी ऋतुओं के पुष्पों और फलों से समृद्ध था । रम्य था, नन्दनवन के समान सुशोभित था । उसकी छाया सुखद और शीतल थी। वह मनोरम, स्वादिष्ट फलयुक्त, कण्टकरहित प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत् प्रतिरूप था । उस