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भगवती - १९/-/७/७७०
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जीवनिर्वृत्ति । भगवन् ! पृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय-जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की - सूक्ष्मपृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय-जीवनिर्वृत्ति और बादरपृथ्वीकायिक- एकेन्द्रिय-जीवनिर्वृत्ति । इस अभिलाप द्वारा आठवें शतक के बृहद् बन्धाधिकार में कथित तैजसशरीर के भेदों के समान यहाँ भी जानना चाहिए, यावत्-भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक वैमानिकदेवपंचेन्द्रियजीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! दो प्रकार की - पर्याप्तसर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिकवैमानिक- देवपंचेन्द्रियजीवनिर्वृत्ति और अपर्याप्तसर्वार्थसिद्धअ-नुत्तरौपपातिकवैमानिकदेवपंचेन्द्रियजीवनिर्वृत्ति ।
भगवन् ! कर्मनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! आठ प्रकार कीज्ञानावरणीयकर्मनिर्वृत्ति यावत् अन्तरायकर्मनिर्वृत्ति । भगवन् ! नैरयिकों की कितने प्रकार की कर्मनिर्वृत्ति कही गई है ? गौतम ! आठ प्रकार की - ज्ञानावरणीयकर्मनिर्वृत्ति, यावत् अन्तरायकर्मनिर्वृत्ति । इसी प्रकार वैमानिकों तक की कर्मनिर्वृत्ति के विषय में जान लेना ।
भगवन् ! शरीरनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पांच प्रकार कीऔदारिकशरीरनिर्वृत्ति यावत् कार्मणशरीरनिर्वृत्ति । भगवन् ! नैरयिकों की कितने प्रकार की शरीरनिर्वृत्ति कही गई है ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए । विशेष यह है कि जिसके जितने शरीर हों, उतनी निर्वृत्ति कहनी चाहिए ।
भगवन् ! सर्वेन्द्रियनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पांच प्रकार कीश्रोत्रेन्द्रियनिर्वृत्ति यावत् स्पर्शेन्द्रियनिर्वृत्ति । इस प्रकार नैरयिकों से लेकर स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की कितनी इन्द्रियनिर्वृत्ति है ? गौतम ! एक मात्र स्पर्शेन्द्रियनिर्वृत्ति कही गई है । इसी प्रकार जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों उतनी इन्द्रियनिर्वृत्ति वैमानिकों पर्यन्त कहनी चाहिए |
भगवन् ! भाषानिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! चार प्रकार की - सत्यभाषानिर्वृत्ति, मृषाभाषानिर्वृत्ति, सत्यामृषाभाषानिर्वृत्ति और असत्याऽमृषाभाषानिर्वृत्ति । इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़ कर वैमानिकों तक, जिसके जो भाषा हो, उसके उतनी भाषानिर्वृत्ति कहनी चाहिए । भगवन् ! मनोनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! चार प्रकार की - सत्यमनोनिर्वृत्ति, यावत् असत्यामृषामनोनिर्वृत्ति । इसी प्रकार एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़ कर वैमानिकों तक कहना चाहिए ।
भगवन् ! कषाय- निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! चार प्रकार की - क्रोधकषायनिर्वृत्ति यावत् लोभकषायनिर्वृत्ति । इसी प्रकार यावत् वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए । भगवन् ! वर्णनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पांच प्रकार की - कृष्णवर्णनिर्वृत्ति, यावत् शुक्लवर्णनिर्वृत्ति । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त समग्र वर्णनिर्वृत्ति कहनी चाहिए । इसी प्रकार दो प्रकार की गन्ध - निर्वृत्ति, इसी तरह पांच प्रकार की रस - निर्वृत्ति एवं आठ प्रकार की स्पर्श - निर्वृत्ति वैमानिकों पर्यन्त कहनी चाहिए ।
भगवन् ! संस्थान - निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! छह प्रकार की - समचतुरस्त्रसंस्थान- निर्वृत्ति यावत् हुण्डकसंस्थान- निर्वृत्ति । भगवन् ! नैरयिकों के संस्थान - निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! एकमात्र हुण्डकसंस्थाननिर्वृत्ति कही गई है । भगवन् ! असुरकुमारों के कितने प्रकार की संस्थाननिर्वृत्ति कही गई है ? गौतम ! एकमात्र समचतुरस्त्रसंस्थान