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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद भेद ज्ञात नहीं होता । भगवन् ! ये पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद में पृथ्वीकायिक जीवों के उत्पाद समान यहाँ भी कहना । भगवन् ! उन पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही है ? गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त की, उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की है । भगवन् ! उन जीवों के कितने समुद्घात कहे गए हैं ? गौतम ! तीन समुद्घात हैं, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात । भगवन् ! क्या वे जीव मारणान्तिकसमुद्घात करके मरते हैं या मारणान्तिक समुद्घात किये बिना ही मरते हैं ? गौतम ! वे मारणान्तिकसमुद्घात करके भी मरते हैं और समुद्घात किये बिना भी मरते हैं । भगवन् ! वे जीव मरकर अन्तररहित कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? ( गौतम ! ) यहाँ व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार उनकी उद्वर्तना कहनी चाहिए । १८२ भगवन् ! क्या कदाचित् दो, तीन, चार या पांच अप्कायिक जीव मिल कर एक साधारण शरीर बांधते हैं और इसके पश्चात् आहार करते हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिकों के अनुसार उद्धर्त्तनाद्वार तक जानना । विशेष इतना ही है कि अप्कायिक जीवों की स्थिति उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की है । भगवन् ! कदाचित् दो, तीन, चार या पांच तेजस्कायिक जीव मिल कर एक साधारण शरीर बांधते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । विशेष यह है कि उनका उत्पाद, स्थिति और उद्वर्त्तना प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानना । वायुकायिक जीवों भी इसी प्रकार है । विशेष यह है कि वायुकायिक जीवों में चार समुद्घात होते हैं । भगवन् ! क्या कदाचित् दो, तीन, चार या पांच आदि वनस्पतिकायिक जीव एकत्र मिलकर साधारण शरीर बांधते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । अनन्त वनस्पतिकायिक जीव मिल कर एक साधारण शरीर बांधते हैं, फिर आहार करते हैं और परिणमाते हैं, इत्यादि सब अग्रिकायिकों के समान उद्वर्त्तन करते हैं, विशेष यह है कि उनका आहार नियमतः छह दिशा का होता है । उनकी स्थिति भी अन्तमुहूर्त की है । [७६२] भगवन् ! इन सूक्ष्म बादर, पर्याप्तक- अपर्याप्तक, पृथ्वीकायिक, अप्पकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहनाओं में से किसकी अवगाहना किसकी अवगाहना से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक होती है ? गौतम ! सबसे अल्प, अपर्याप्त सूक्ष्मनिगोद की जघन्य अवगाहना है । उससे असंख्यगुणी हैअपर्याप्त सूक्ष्म वायुकायिक की जघन्य अवगाहना । उससे अपर्याप्त सूक्ष्म अग्निकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यगुणी है । उससे अपर्याप्त सूक्ष्म अप्कायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यगुणी है । उससे अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यगुणी है । उससे अपर्याप्त बादर वायुकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यगुणी है । उससे अपर्याप्त बादर अग्निकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यगुणी है । उससे अपर्याप्तक बादर अप्कायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । उससे अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । उससे अपर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की और बादर निगोद की जघन्य अवगाहना दोनों की परस्पर तुल्य और असंख्यातगुणी है । उससे पर्याप्त सूक्ष्म निगोद की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । उससे अपर्याप्त सूक्ष्म निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है । उससे पर्याप्तक सूक्ष्म निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है । उससे पर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । उससे अपर्याप्तक सूक्ष्म
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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