________________
भगवती-१८/-/१/७२२
१६१
सम्यग्यदृष्टिजीव प्रथम भी है, अप्रथम भी हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना । बहुवचन से (सभी) सिद्ध प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं । मिथ्यादृष्टिजीव मिथ्यादृष्टिभाव की अपेक्षा से आहारक जीवों के समान कहना । सम्यगमिथ्यादृष्टि जीव के विषय में सम्यग्मिथ्यादृष्टिभाव की अपेक्षा से सम्यग्दृष्टि के समान (कहना ।) विशेष यह है कि जिस जीव के सम्यग्मिथ्यादृष्टि हो, (उसी के विषय में कहना ।)
संयत जीव और मनुष्य के विषय में, एकत्व और बहुत्व की अपेक्षा, सम्यग्दृष्टि जीव के समान, असंयतजीव के विषय में आहारक जीव के समान, संयतासंयत जीव, पंचेन्द्रिय तिर्ययोनिक
और मनुष्य, में सम्यग्दृष्टि के समान समझना चाहिए । नोसंयत-नोअसंयत और नोसंयतासंयत जीव, तथा सिद्ध, प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं ।
सकषायी, क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी, ये सब एकवचन और बहुवचन से आहारक के समान जानना चाहिए । (एक) अकषायी जीव कदाचित् प्रथम और कदाचित् अप्रथम होता है । इसी प्रकार (एक अकषायी) मनुष्य भी (समझना चाहिए ।) (अकषायी एक) सिद्ध प्रथम है, अप्रथम नहीं । बहुवचन से अकषायी जीव प्रथम भी हैं, अप्रथम भी हैं । बहुवचन से अकषायी सिद्धजीव प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं ।
ज्ञानी जीव, सम्यग्दृष्टि के समान कदाचित् प्रथम और कदाचित् अप्रथम होते हैं । आभिनिबोधिकज्ञानी यावत् मनःपर्यायज्ञानी, इसी प्रकार हैं । विशेष यह है जिस जीव के जो ज्ञान हो, वह कहना । केवलज्ञानी जीव, मनुष्य और सिद्ध, प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं । अज्ञानी जीव, मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी; ये सब, एकवचन और बहुवचन से आहारक जीव के समान (जानने चाहिए ।)
सयोगी, मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी जीव, एकवचन और बहुवचन से आहारक जीवों के समान अप्रथम होते हैं । विशेष यह है कि जिस जीव के जो योग हो, वह कहना चाहिए । अयोगी जीव, मनुष्य और सिद्ध, प्रथम होते हैं, अप्रथम नहीं होते हैं । साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव, अनाहारक जीवों के समान हैं ।
सवेदक यावत् नपुंसकवेदक जीव, एकवचन और बहुवचन से, आहारक जीव के समान हैं । विशेष यह है कि, जिस जीव के जो वेद हो, (वह कहना चाहिए) । एकवचन और बहुवचन से, अवेदक जीव, जीव, मनुष्य और सिद्ध में अकषायी जीव के समान हैं ।
सशरीरी जीव, आहारक जीव के समान हैं । इसी प्रकार यावत् कार्मणशरीरी जीव के विषय में भी जान लेना चाहिए । किन्तु आहारक-शरीरी के विषय में एकवचन और बहुवचन से, सम्यग्दृष्टि जीव के समान कहना चाहिए | अशरीरी जीव और सिद्ध, एकवचन और बहुवचन से प्रथम हैं, अप्रथम नहीं । पांच पर्याप्तियों से पर्याप्त और पांच अपर्याप्तियों से अपर्याप्त जीव, एकवचन और बहुवचन से, आहारक जीव के समान हैं । विशेष यह है कि जिसके जो पर्याप्ति हो, वह कहनी चाहिए । इस प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक जानना चाहिए । अर्थात्ये सब प्रथम नहीं, अप्रथम हैं । -यहा लक्षण गाथा है ।
[७२३] जिस जीव को जो भाव पूर्व से प्राप्त है, उस भाव की अपेक्षा से वह जीव 'अप्रथम' है, किन्तु जिन्हें जो भाव पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ है, उस भाव की अपेक्षा से वह जीव प्रथम कहलाता है ।
41