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________________ १५४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ-प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में वर्तमान प्राणी जीव है और वही जीवात्मा है, यावत् अनाकारोपयोग में वर्तमान प्राणी जीव है । और वही जीवात्मा है । [७०२] भगवन् ! क्या महर्द्धिक यावत् महासुख-सम्पन्न देव, पहले रूपी होकर बाद में अरूपी की विक्रिया करने में समर्थ है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं ? गौतम ! मैं यह जानता हूँ, मैं यह देखता हूँ, मैं यह निश्चित जानता हूँ, मैं यह सर्वथा जानता हूँ, मैंने यह जाना है, मैंने यह देखा है, मैंने यह निश्चित समझ लिया है और मैंने यह पूरी तरह से जाना है कि तथा प्रकार के सरूपी, सकर्म सराग, सवेद, समोह सलेश्य, सशरीर और उस शरीर से अविमुक्त जीव के विषय में ऐसा सम्प्रज्ञात होता है, यथा-उस शरीरयुक्त जीव में कालापन यावत् श्वेतपन, सुगन्धित्व या दुर्गन्धित्व, कटुत्व यावत् मधुरत्व, कर्कशत्व यावत् रूक्षत्व होता है । इस कारण, हे गौतम ! वह देव पूर्वोक्त प्रकार से यावत् विक्रिया करके रहने में समर्थ नहीं है । भगवन् ! क्या वही जीव पहले अरूपी होकर, फिर रूपी आकार की विकुर्वणा करके रहने में समर्थ है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भंते ! क्या कारण है कि वह...यावत् समर्थ नहीं है ? गौतम ! मैं यह जानता हूँ, यावत् कि तथा-प्रकार के अरूपी, अकर्मी, अरागी, अवेदी, अमोही, अलेश्यी, अशरीरी और उस शरीर से विप्रमुक्त जीव के विषय में ऐसा ज्ञात नहीं होता कि जीव में कालापन यावत् रूक्षपन है । इस कारण, हे वह देव पूर्वोक्त प्रकार से विकुर्वणा करने में समर्थ नहीं है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । | शतक-१७ उद्देशक-३ [७०३] भगवन् ! शैलेशी-अवस्था प्राप्त अनगार क्या सदा निरन्तर कांपता है, विशेषरूप से कांपता है, यावत् उन-उन भावों (परिणमनों) में परिणमता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । सिवाय एक परप्रयोग के । भगवन् ! एजना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पांच प्रकार की यथा-द्रव्यएजना, क्षेत्र-एजना, काल-एजना, भव-एजना और भाव-एजना । भगवन् ! द्रव्य-एजना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! चार प्रकार की । यथानैरयिकद्रव्यैजना, तिर्यग्योनिकद्रव्यैजना, मनुष्यद्रव्यैजना और देवद्रव्यैजना | भगवन् ! नैरयिकद्रव्यएजना को नैरयिकद्रव्यएजना क्यों कहा जाता है ? गौतम ! क्योंकि नैरयिक जीव, नैरयिकद्रव्य में वर्तित थे, वर्तते हैं और वर्तेगे; इस कारण वहाँ नैरयिक जीवों ने, नैरयिकद्रव्य में वर्तते हुए, नैरयिकद्रव्य की एजना की थी, करते हैं और करेंगे, इसी कारण से वह नैरयिकद्रव्यएजना कहलाती है । भगवन् ! तिर्यग्योनिकद्रव्य-एजना तिर्यग्योनिकद्रव्य-एजना क्यों कहलाती है ? गौतम ! पूर्ववत् । विशेष यह है कि 'नैरयिकद्रव्य' के स्थान पर 'तिर्यम्योनिकद्रव्य' कहना । इसी प्रकार यावत् देवद्रव्य-एजना भी जानना । ___ भगवन् ! क्षेत्र-एजना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! वह चार प्रकार की कही गई है । यथा-नैरयिकक्षेत्र-एजना यावत् देवक्षेत्र-एजना । भगवन् ! इसे नैरयिकक्षेत्र-एजना क्यों कहा जाता है ? गौतम ! नैरयिकद्रव्य-एजना के समान सारा कथन करना । विशेष यह है कि नैरयिकद्रव्य-एजना के स्थान पर यहाँ नैरयिकक्षेत्र-एजना कहना चाहिए । इसी प्रकार देवक्षेत्र
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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