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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
के समान जानना । विशेष यह है कि तैजसशरीर-सम्बन्धी वक्तव्य सभी जीवों के विषय में कहना । इसी प्रकार कार्मणशरीर को भी जानना। .
___ भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय को बांधता हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ? गौतम ! औदारिकशरीर के वक्तव्य के समान श्रोत्रेन्द्रिय के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए । परन्तु जिन जीवों के श्रोत्रेन्द्रिय हो, उनकी अपेक्षा ही यह कथन है । इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के विषय में जानना चाहिए । विशेष, जिन जीवों के जितनी इन्द्रियाँ हों, उनके विषय में उसी प्रकार जानना चाहिए । . भगवन् ! मनोयोग को बांधता हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ? श्रोत्रेन्द्रिय के समान सब मनोयोग के विषय में भी कहना । वचनयोग के विषय में भी इसी प्रकार जानना । विशेष वचनयोग में एकेन्द्रियों का कथन नहीं करना । इसी प्रकार काययोग के विषय में भी कहना । विशेष यह है कि काययोग सभी जीवों के होता है । वैमानिकों तक इसी प्रकार जानना। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।।
| शतक-१६ उद्देशक-२ [६६६] राजगृह नगर में यावत् पूछा- भगवन् ! क्या जीवों के जरा और शोक होता है ? गौतम ! जीवों के जरा भी होती है और शोक भी होता है । भगवन् ! किस कारण से जीवों को जरा भी होती है और शोक भी होता है ? गौतम ! जो जीव शारीरिक वेदना वेदते हैं, उन जीवों को जरा होती है और जो जीव मानसिक वेदना वेदते हैं, उनको शोक होता है । इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा गया है । इसी प्रकार नैरयिकों के भी समझ लेना। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों के विषय में भी जानना ।
भंते ! क्या पृथ्वीकायिक जीवों के जरा और शोक होता है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के जरा होती है, शोक नहीं होता है । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के जरा होती है, शोक क्यों नहीं होता है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव शारीरिक वेदना वेदते हैं, मानसिक वेदना नहीं वेदते; इस कारण से | इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक जानना । शेष जीवों का कथन सामान्य जीवों के समान वैमानिकों तक। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
[६६७] उस काल एवं उस समय में शक्र देवेन्द्र देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर यावत् उपभोग करता हुआ विचरता था । वह इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की ओर अपने विपुल अवधिज्ञान का उपयोग लगा-लगा कर जम्बूद्वीप में श्रमण भगवान् महावीर को देख रहा था । यहाँ तृतीय शतक में कथित ईशानेन्द्र की वक्तव्यता के समान शक्रेन्द्र कहना विशेषता यह है कि शक्रेन्द्र आभियोगिक देवों को नहीं बुलाता | इसकी पैदल सेना का अधिपति हरिणैगमेषी देव है, (जो) सुघोषा घंटा (बजाता) है । विमाननिर्माता पालक देव है । इसके निकलने का मार्ग उत्तरदिशा है । अग्निकोण में रतिकर पर्वत है । शेष सभी वर्णन उसी प्रकार यावत् शक्रेन्द्र भगवान् के निकट उपस्थित हुआ
और अपना नाम बतला कर भगवान् की पर्युपासना करने लगा (भगवान् ने) धर्मकथा कही; यावत् परिषद् वापिस लौट गई ।
___तदनन्तर देवेन्द्र देवराज शक्र श्रमण भगवान् महावीर से धर्म श्रमण कर एवं अवधारण करके अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ । उसने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना-नमस्कार