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भगवती-३/-/२/१७०
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वे (वैमानिक) अप्सराएँ उनका आदर करें, उन्हें स्वामीरूप में स्वीकारें तो, वे असुरकुमार देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य भोग भोग सकते हैं, यदि आदर न करें, उनका स्वामी-रूप में स्वीकार न करें तो, असुरकुमार देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य एवं भोग्य भोगों को नहीं भोग सकते । हे गौतम ! इस कारण से असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक गए हैं, (जाते हैं) और जाएँगे ।
[१७१] भगवन् ! कितने काल में असुरकुमार देव ऊर्ध्व-गमन करते हैं, तथा सौधर्मकल्प तक ऊपर गये हैं, जाते हैं और जाएँगे ? गौतम ! अनन्त उत्सर्पिणी-काल और अनन्त अवसर्पिणीकाल व्यतीत होने के पश्चात् लोक में आश्चर्यभूत यह भाव समुत्पन्न होता है कि असुरकुमार देव ऊध्वगमन करते हैं, यावत् सौधर्मकल्प तक जाते हैं ।
भगवन् ! किसका आश्रय लेकर असुरकुमार देव ऊर्ध्व-गमन करते हैं, यावत् ऊपर सौधर्मकल्प तक जाते हैं ? हे गौतम ! जिस प्रकार यहाँ शबर, बर्बर, टंकण या चुचुक, प्रश्नक अथवा पुलिन्द जाति के लोग किसी बड़े अरण्य का, गड्ढे का, दुर्ग का, गुफा का, किसी विषम स्थान का, अथवा पर्वत का आश्रय ले कर एक महान् एवं व्यवस्थित अश्ववाहिनी को, गजावाहिनी को, पैदलसेना को अथवा धनुर्धारियों को आकुल-व्याकुल कर देते हैं। इसी प्रकार असुरकुमार देव भी अरिहन्तों का या अरिहन्तदेव के चैत्यों का, अथवा भावितात्मा अनगारों का आश्रय ले कर ऊर्ध्वगमन करते हैं, यावत् सौधर्मकल्प तक ऊपर जाते हैं । - भगवन् क्या सभी असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक यावत् ऊर्ध्वगमन करते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । किन्तु महती ऋद्धिवाले असुरकुमार देव ही यावत् सौधर्मदेवलोक तक ऊपर जाते हैं । हे भगवन् ! क्या असुरेन्द्र असुरराज चमर भी पहले कभी ऊपरयावत् सौधर्मकल्प तक ऊर्ध्वगमन कर चुका है ? हाँ, गौतम ! यह असुरेन्द्र असुरराज चमर भी पहले ऊपर-यावत् सौधर्मकल्प तक ऊर्ध्वगमन कर चुका है ।
'अहो, भगवन् ! (आश्चर्य है,) असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महाऋद्धि एवं महाद्युति वाला है ! तो हे भगवन् ! उसकी वह दिव्य देवकृद्धि यावत् दिव्य देवप्रभाव कहाँ गया, कहाँ प्रविष्ट हुआ ?' गौतम ! यहाँ भी कूटाकारशाला का दृष्टान्त कहना चाहिए ।
. [१७२] भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर को वह दिव्य देवऋद्धि और यावत् वह सब, किस प्रकार उपलब्ध हुई, प्राप्त हुई और अभिसमन्वागत हुई ? हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष (क्षेत्र) में, विन्ध्याचल की तलहटी में 'बेभेल' नामक सन्निवेश था । वहाँ 'पूरण' नामक एक गृहपति रहता था । वह आढ्य और दीप्त था । यहाँ तामली की तरह 'पूरण' गृहपति की सारी वक्तव्यता जान लेनी चाहिए । विशेष यह है कि चार खानों वाला काष्ठमय पात्र बना कर यावत् विपुल अशन, पान, खादिम
और स्वादिम रूप चतुर्विध आहार बनवा कर ज्ञातिजनों आदि को भोजन करा कर तथा उनके समक्ष ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंप कर यावत् स्वयमेव चार खानों वाले काष्ठपात्र को लेकर मुण्डित होकर ‘दानामा' नामक प्रव्रज्या अंगीकार की।
प्रव्रजित हो जाने पर उसने पूर्ववर्णित तामली तापस की तरह सब प्रकार से तपश्चर्या की, आतापना भूमि में आतापना लेने लगा, इत्यादि सब कथन पूर्ववत् जानना; यावत् वह आतापना भूमि से नीचे उतरा । फिर स्वयमेव चार खानों वाला काष्ठमय पात्र लेकर 'बेभेल'