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भगवती-२/-/५/१४७
सम्बन्ध में भी समझ लेना चाहिए । इन पांचों के सम्बन्ध में एक समान अभिलाप है । [१४८] भगवन् ! धर्मास्तिकाय के कितने भाग को अधोलोक स्पर्श करता है ? गौतम ! अधोलोक धर्मास्तिकाय के आधे से कुछ अधिक भाग को स्पर्श करता है।
भगवन् ! धर्मास्तिकाय के कितने भाग को तिर्यग्लोक स्पर्श करता है ? पृच्छा० । गौतम ! तिर्यग्लोक धर्मास्तिकाय के असंख्येय भाग को स्पर्श करता है । भगवन् ! धर्मास्तिकाय के कितने भाग को ऊर्ध्वलोक स्पर्श करता है ? गौतम ! ऊर्ध्वलोक धर्मास्तिकाय के देशोन अर्धभाग को स्पर्श करता है ।
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[१४९] भगवन् ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी, क्या धर्मास्तिकाय के संख्यात भाग को स्पर्श करती है या असंख्यात भाग को स्पर्श करती है, अथवा संख्यात भागों को स्पर्श करती है या असंख्यात भागों को स्पर्श करती है अथवा समग्र को स्पर्श करती है ? गौतम ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी, धर्मास्तिकाय के संख्यात भाग को स्पर्श नहीं करती, अपितु असंख्यात भाग को स्पर्श करती है । इसी प्रकार संख्यात भागों को, असंख्यात भागों को या समग्र धर्मास्तिकाय को स्पर्श नहीं करती ।
भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी का घनोदधि, धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श करता है; यावत् समग्र धर्मास्तिकाय को स्पर्श करता है ? इत्यादि पृच्छा । हे गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के लिए कहा गया है, उसी प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधि के विषय में कहना चाहिये । और उसी तरह घनवात और तनुवात के विषय में भी कहना चाहिए ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का अवकाशान्तर क्या धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श करता है, अथवा असंख्येय भाग को स्पर्श करता है ?, यावत् सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय को स्पर्श करता है ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का अवकाशान्तर, धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श करता है, किन्तु असंख्येय भाग को, संख्येय भागों को, असंख्येय भागों को तथा सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय को स्पर्श नहीं करता । इसी तरह समस्त अवकाशान्तरों के सम्बन्ध में कहना । रत्नप्रभा पृथ्वी के समान यावत् सातवीं पृथ्वी तक कहना ।
[तथा जम्बूद्वीप आदि द्वीप और लवणसमुद्र आदि समुद्र,] सौधर्मकल्प से ले कर ( यावत्) ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक, ये सभी धर्मास्तिकाय के असंख्येय भाग को स्पर्श करते हैं । शेष भागों की स्पर्शना का निषेध करना चाहिए । जिस तरह धर्मास्तिकाय की स्पर्शना कही, उसी तरह अधर्मास्तिकाय और लोकाकाशास्तिकाय की स्पर्शना के विषय में भी कहना । [१५०] पृथ्वी, घनोदधि, घनवात, तनुवात, कल्प, ग्रैवेयक, अनुत्तर, सिद्धि ( ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी) तथा सात अवकाशान्तर, इनमें से अवकाशान्तर तो धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग का स्पर्श करते हैं और शेष सब धर्मास्तिकाय के असंख्येय भाग का स्पर्श करते हैं । शतक - २ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
[१५१] तृतीय शतक में दस शक्ति कैसी है ? इत्यादि प्रश्नोत्तर हैं,
शतक- ३
उद्देशक- १
उद्देशक हैं । प्रथम उद्देशक में चमरेन्द्र की विकुर्वणादूसरे उद्देशक में चमरेन्द्र का उत्पात तृतीय उद्देशक में