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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
में देवरूप में उत्पन्न हुआ है । वहाँ कतिपय देवों की स्थिति बाईस सागरोपम की है । तदनुसार स्कन्दक देव की स्थिति भी बाईस सागरोपम की है ।
तत्पश्चात् श्री गौतमस्वामी ने पूछा- 'भगवन् ! स्कन्दकदेव वहाँ की आयु का क्षय, भव का क्षय और स्थिति का क्षय करके उस देवलोक से कहाँ जाएँगे और कहाँ उत्पन्न होंगे ?' गौतम ! स्कन्दक देव वहाँ की आयु, भव और स्थिति का क्षय होने पर महाविदेहवर्ष (क्षेत्र) में जन्म लेकर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त करेंगे और सभी दुःखों का अन्त करेंगे । श्री स्कन्दक का जीवनवृत्त पूर्ण हुआ ।
शतक - २ उद्देशक - २
[११८] भगवन् ! कितने समुद्घात कहे गए हैं ? गौतम ! समुद्धात सात कहे गए हैं । वे इस प्रकार हैं - वेदना - समुद्घात् कषाय-समुद्घात, मारणान्तिक-समुद्घात, वैक्रियसमुद्घात, तैजस-समुद्घात, आहारक - समुद्घात और केवलि - समुद्घात । यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का छत्तीसवाँ समुद्घातपद कहना चाहिए, किन्तु उसमें प्रतिपादित छद्मस्थ समुद्घात का वर्णन यहाँ नहीं कहना चाहिए । और इस प्रकार यावत् वैमानिक तक जानना चाहिए, तथा कषाय- समुद्घात और अल्पबहुत्व कहना चाहिए ।
हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार के क्या केवली - समुद्घात यावत् समग्र भविष्यकाल - पर्यन्त शाश्वत रहता है ? हे गौतम ! यहाँ भी उपर्युक्त कथनानुसार समुद्घातपद जानना । शतक - २ उद्देशक - ३
[११९] भगवन् ! पृथ्वीयाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! जीवाभिगमसूत्र में नैरयिक उद्देशक में पृथ्वीसम्बन्धी जो वर्णन है, वह सब यहाँ जान लेना चाहिए । वहाँ उनके संस्थान, मोटाई आदि का तथा यावत्- अन्य जो भी वर्णन है, वह सब यहाँ कहना ।
[१२०] पृथ्वी, नरकावास का अंतर, संस्थान, बाहल्य, विष्कम्म, परिक्षेप, वर्ण, गंध और स्पर्श (यह सब कहेना चाहिए ) ।
[१२१] भगवन् ! क्या सब जीव उत्पन्नपूर्व हैं ? हाँ, गौतम ! सभी जीव रत्नप्रभा आदि नरकपृथ्वीयों में अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुके हैं । शतक - २ उद्देशक - ४
[१२२ ] भगवन् ! इन्द्रियाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! पांच । श्रोत्रेन्द्रिय चक्षुरिन्द्रिय, प्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय । यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के, इन्द्रियपद का प्रथम उद्देशक कहना । उसमें कहे अनुसार इन्द्रियों का संस्थान, बाहल्य, चौड़ाई, यावत् अलोक तक समग्र इन्द्रिय-उद्देशक कहना चाहिए ।
शतक - २ उद्देशक - ५
[१२३] भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बताते हैं और प्ररूपणा करते हैं कि कोई भी निर्ग्रन्थ मरने पर देव होता है और वह देव, वहाँ दूसरे देवों के साथ, या दूसरे देवों की देवियों के साथ, उन्हें वश में करके या उनका आलिंगन करके,