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________________ ४४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद अथवा सर्वभाग से अर्द्ध भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है ? या सर्वभाग से सर्वभाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है ? गौतम ! जैसे पहलेवालों के साथ आठ दण्डक कहे हैं, वैसे ही ‘अर्द्ध' के साथ भी आठ दण्डक कहने चाहिए । विशेषता इतनी है कि जहाँ 'एक भाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है, ऐसा पाठ आए, वहाँ 'अर्द्ध भाग से अर्द्ध भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता हैं', ऐसा पाठ बोलना चाहिए । बस यही भिन्नता है । ये सब मिल कर कुल सोलह दण्डक होता हैं । [८१] भगवन् ! क्या जीव विग्रहगतिसमापन्न-विग्रहगति को प्राप्त होता है, अथवा विग्रहगतिसमापन्न-विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता ? गौतम ! कभी (वह) विग्रहगति को प्राप्त होता है, और कभी विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता । इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त जानना चाहिए। भगवन् ! क्या बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त होते हैं अथवा विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते ? गौतम ! बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त होते हैं और बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त नहीं भी होते । भगवन् ! क्या नैरयिक विग्रहगति को प्राप्त होते हैं या विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते ? गौतम ! (कभी) वे सभी विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते, अथवा (कभी) बहुत से विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते और कोई-कोई विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता, अथवा (कभी) बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते और बहुत से (जीव) विग्रहगति को प्राप्त होते हैं । यों जीव सामान्य और एकेन्द्रिय को छोड़कर सर्वत्र इसी प्रकार तीन-तीन भंग कहने चाहिए। [८२] भगवन् ! महान् ऋद्धि वाला, महान् द्युति वाल, महान् बल वाला, महायशस्वी, महाप्रभावशाली, मरणकाल में च्यवने वाला, महेश नामक देव लज्जा के कारण, घृणा के कारण, परीषह के कारण कुछ समय तक आहार नहीं करता, फिर आहार करता है और ग्रहण किया हुआ आहार परिणत भी होता है । अन्त में उस देव की वहाँ की आयु सर्वथा नष्ट हो जाती है । इसलिए वह देव जहाँ उत्पन्न होता है, वहाँ की आयु भोगता है; तो हे भगवन् ! उसकी वह आयु तिर्यञ्च की समझी जाए या मनुष्य की आयु समझी जाए ? हाँ, गौतम ! उस महा ऋद्धि वाले देव का यावत् च्यवन के पश्चात तिर्यञ्च का आयुष्य अथवा मनुष्य का आयुष्य समझना चाहिए । [८३] भगवन् ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव, क्या इन्द्रियसहित उत्पन्न होता है अथवा इन्द्रियरहित उत्पन्न होता ? गौतम ! इन्द्रियसहित भी उत्पन्न होता है, इन्द्रियरहित भी, उत्पन्न होता है । भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा वह बिना इन्द्रियों का उत्पन्न होता है और भावेन्द्रियों की अपेक्षा इन्द्रियों सहित उत्पन्न होता है, इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है ।। भगवन् ! गर्भ में उत्पन्न होता हआ जीव, क्या शरीर-सहित उत्पन्न होता है, अथवा शरीररहित उत्पन्न होता है ? गौतम ! शरीरसहित भी उत्पन्न होता है, शरीररहित भी उत्पन्न होता है । भगवन् ! यह आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरों की अपेक्षा शरीरहित उत्पन्न होता है तथा तैजस, कार्मण शरीरों की अपेक्षा शरीरसहित उत्पन्न होता है । इस कारण गौतम ! ऐसा कहा है ।
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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