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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
संयोग किया, उसी प्रकार अलोकान्त के साथ इन सभी स्थानों को जोड़ना चाहिए ।
भगवन् ! पहले सप्तम अवकाशान्तर है और पीछे सप्तम तनुवात है ? हे रोह ! इसी प्रकार सप्तम अवकाशान्तर को पूर्वोक्त सब स्थानों के साथ जोड़ना चाहिए । इसी प्रकार यावत् सर्वाद्धा तक समझना चाहिए । भगवन् ! पहले सप्तम तनुवात है और पीछे सप्तम घनवात है ? रोह ! यह भी उसी प्रकार यावत् सर्वाद्धा तक जानना चाहिए । इस प्रकार ऊपर के एक-एक (स्थान) का संयोग करते हुए और नीचे का जो-जो स्थान हो, उसे छोड़ते हुए पूर्ववत् समझना, यावत् अतीत और अनागत काल और फिर सर्वाद्धा तक, यावत् हे रोह ! इसमें कोई पूर्वापर का क्रम नहीं होता । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर रोह अनगार तप संयम से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे ।
[७६] 'हे भगवन्' ! ऐसा कह कर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से यावत् कहा-भगवन् ! लोक की स्थिति कितने प्रकार की कही गई है ? 'गौतम ! आठ प्रकार की। वह इस प्रकार है-आकाश के आधार पर वायु (तनुवात) टिका हुआ है; वायु के आधार पर उदधि है; उदधि के आधार पर पृथ्वी है, त्रस और स्थावर जीव पृथ्वी के आधार पर हैं; अजीव जीवों के आधार पर टिके हैं; (सकर्मक जीव) कर्म के आधार पर हैं; अजीवों को जीवों ने संग्रह कर रखा है, जीवों को कर्मों ने संग्रह कर रखा है ।
भगवन ! इस प्रकार कहने का क्या कारण है कि लोक की स्थिति आठ प्रकार की है और यावत् जीवों को कर्मों ने संग्रह कर रखा है ? गौतम ! जैसे कोई पुरुष चमड़े की मशक को वायु से फुलावे; फिर उस मशक का मुख बांध दे, तत्पश्चात् मशक के बीच के भाग में गांठ बांधे; फिर मशक का मुँह खोल दे और उसके भीतर की हवा निकाल दे; तदनन्तर उस मशक के ऊपर के भाग में पानी भरे; फिर मशक का मुख बंद कर दे, तत्पश्चात् उस मशक की बीच की गांठ खोल दे, तो हे गौतम ! वह भरा हुआ पानी क्या उस हवा के ऊपर ही ऊपर के भाग में रहेगा ? (गौतम-) हाँ, भगवान् ! रहेगा । (भगवान्-) 'हे गौतम ! इसीलिए मैं कहता हूं कि यावत्-कर्मों को जीवों ने संग्रह कर रखा है ।।
अथवा हे गौतम ! कोई पुरुष चमड़े की उस मशक को हवा से फुला कर अपनी कमर पर बांध ले, फिर वह पुरुष अथाह, दुस्तर और पुरुष-परिमाण से भी अधिक पानी में प्रवेश करे; तो वह पुरुष पानी की ऊपरी सतह पर ही रहेगा ? हाँ, भगवन् ! रहेगा । हे गौतम ! इसी प्रकार यावत्-कर्मों ने जीवों को संगृहीत कर रखा है ।
[७७] भगवन् ! क्या जीव और पुद्गल परस्पर सम्बद्ध हैं ?, परस्पर एक दूसरे से स्पृष्ट हैं ?, परस्पर गाढ़ सम्बद्ध हैं, परस्पर स्निग्धता से प्रतिबद्ध हैं, (अथवा) परस्पर घट्टित हो कर रहे हुए हैं ? हाँ, गौतम ! ये परस्पर इसी प्रकार रहे हुए हैं । भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! जैसे-एक तालाब हो, वह जल से पूर्ण हो, पानी से लबालब भरा हुआ हो, पानी से छलक रहा हो और पानी से बढ़ रहा हो, वह पानी से भरे हुए घड़े के समान है । उस तालाब में कोई पुरुष एक ऐसी बड़ी नौका, जिसमें सौ छोटे छिद्र हों और सौ बड़े छिद्र हों; डाल दे तो वह नौका, उन-उन छिद्रों द्वारा पानी से भरती हुई, जल से परिपूर्ण, पानी से लबालब भरी हुई, पानी से छलकती हुई, बढ़ती हुई क्या भरे हुए घड़े के समान हो जाएगी? हाँ, भगवन् ! हो जाएगी । इसलिए हे गौतम ! मैं कहता हूँ-यावत् जीव और