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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
ही दूर से अस्त होता सूर्य भी आँखों से दिखाई देता है ।
भगवन् ! उदय होता हुआ सूर्य अपने ताप द्वारा जितने क्षेत्र को सब प्रकार से, चारों ओर से सभी दिशाओं-विदिशाओं को प्रकाशित करता है, उद्योतित करता है, तपाता है और अत्यन्त तपाता है, क्या उतने ही क्षेत्र को अस्त होता हुआ सूर्य भी अपने ताप द्वारा सभी दिशाओं-विदिशाओं को प्रकाशित करता है, उद्योतित करता है, तपाता है और बहुत तपाता है ? हाँ, गौतम ! उदय होता हुआ सूर्य जितने क्षेत्र को प्रकाशित करता है, यावत् अन्यन्त तपाता है, उतने ही क्षेत्र को अस्त होता हुआ सूर्य भी यावत् अत्यन्त तपाता है ।
भगवन् ! सूर्य जिस क्षेत्र को प्रकाशित करता है, क्या वह क्षेत्र सूर्य से स्पृष्ट होता है, या अस्पृष्ट होता है ? गौतम ! वह क्षेत्र सूर्य से स्पृष्ट होता है और यावत् उस क्षेत्र को छहों दिशाओं में प्रकाशित करता है । इसी प्रकार उद्योतित करता है, तपाता है और बहुत तपाता है, यावत् नियमपूर्वक छहों में दिशाओं अत्यन्त तपाता है ।।
'भगवन् ! सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है, या अस्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है ? गौतम ! सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है, यावत् छहों दिशाओं में स्पर्श करता है ।।
[७०] भगवन् ! क्या लोक का अन्त अलोक के अन्त को स्पर्श करता है ? क्या अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है ? हाँ, गौतम ! लोक का अन्त अलोक के अन्त को स्पर्श करता है, और अलोक का अन्त लोक के अन्त को स्पर्श करता है | भगवन् ! वह जो स्पर्श करता है, क्या वह स्पृष्ट है या अस्पृष्ट है ? गौतम ! यावत् नियमपूर्वक छहों दिशाओं में स्पृष्ट होता है ।
भगवन् क्या द्वीप का अन्त समुद्र के अन्त को और समुद्र का अन्त द्वीप के अन्त को स्पर्श करता है ? हाँ गौतम ! यावत्-छहों दिशाओं में स्पर्श करता है । भगवन् ! क्या इसी प्रकार पानी का किनारा, पोत के किनारे को और पोत का किनारा पानी के किनारे को, क्या छेद का किनारा वस्त्र के किनारे को और वस्त्र का किनारा छेद के किनारे को और क्या छाया का अन्त आतप के अन्त को और आतप का अन्त छाया के अन्त को स्पर्श करता है ? हाँ, गौतम ! यावत् छहों दिशाओं को स्पर्श करता है ।
[७१] भगवन् ! क्या जीवों द्वारा प्राणातिपातक्रिया की जाती है ? भगवन् ! की जाने वाली वह प्राणातिपातक्रिया क्या स्पृष्ट है, या अस्पृष्ट है ? गौतम ! यावत् व्याघात न हो तो छहों दिशाओं को और व्याघात हो तो कदाचित् तीन दिशाओं को, कदाचित् चार दिशाओं को और कदाचित् पांच दिशाओं को स्पर्श करती है ।
भगवन् ! क्या वह (प्राणातिपात) क्रिया ‘कृत' है अथवा अकृत ? गौतम ! वह क्रिया कृत है, अकृत नहीं । भगवन् ! की जाने वाली वह क्रिया क्या आत्मकृत है, परकृत है, अथवा उभयकृत है ? गौतम ! वह क्रिया आत्मकृत है, किन्तु परकृत या उभयकृत नहीं । भगवन् ! जो क्रिया की जाती है, वह क्या अनुक्रमपूर्वक की जाती है, या बिना अनुक्रम से? गौतम ! वह अनुक्रमपूर्वक की जाती है, बिना अनुक्रमपूर्वक नहीं ।
भगवन् ! क्या नैरयिकों द्वारा प्राणातिपातक्रिया की जाती है ? हाँ, गौतम ! की जाती है । भगवन् ! नैरयिकों द्वारा जो क्रिया की जाती है, वह स्पृष्ट की जाती है या अस्पृष्ट की जाती है । गौतम ! वह यावत् नियम से छहों दिशाओं में की जाती है । भगवन् ! नैरयिकों