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________________ ३८ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद क्रोधोपयुक्त इत्यादि हैं ? गौतम ! इनके भी क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नैरयिकों में कितनी लेश्याएँ हैं ? गौतम ! उनमें केवल एक कापोतलेश्या कही गई है । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले कापोतलेश्या वाले नारक जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं, यावत् लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनके भी सत्ताईस भंग कहने चाहिए । [ ६४ ] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसनेवाले नारक जीव क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, या सम्यग्मिथ्यादृष्टि (मिश्रद्दष्टि ) हैं ? हे गौतम ! वे तीनों प्रकार के होते हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में बसनेवाले सम्यग्दृष्टि नारक क्या क्रोधोपयुक्त यावत् लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनके क्रोधोपयुक्त आदि सत्ताईस भंग कहने चाहिए । इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि के भी क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए । सम्यग्मिथ्यादृष्टि के अस्सी भंग कहने चाहिए । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले नारक जीव क्या ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं ? गौतम ! उनमें ज्ञानी भी हैं, और अज्ञानी भी हैं । जो ज्ञानी हैं, उनमें नियमपूर्वक तीन ज्ञान होते हैं, और जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से होते हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले आभिनिबोधिक ज्ञानी नारकी जीव क्या क्रोधोपयुक्त यावत् लोभोपयुक्त होते हैं ? गौतम ! उन आभिनिबोधिक ज्ञानवाले नारकों के क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए । इसी प्रकार तीनों ज्ञानवाले तथा तीनों अज्ञानवाले नारकों में क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहनेवाले नारक जीव क्या मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं अथवा काययोगी हैं ? गौतम ! वे प्रत्येक तीनों प्रकार के हैं; भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले और यावत् मनोयोग वाले नारक जीव क्या क्रोधोपयुक्त यावत् लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! उनके क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए । इसी प्रकार वचनयोगी और काययोगी के भी क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नारक जीव क्या साकारोपयोग से युक्त हैं अथवा अनाकारोपयोग से युक्त हैं ? गौतम ! वे साकारोपयोगयुक्त भी हैं और अनाकारोपयोगयुक्त भी हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के साकारोपयोगयुक्त नारक जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं; यावत् लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनमें क्रोधोपयुक्त इत्यादि २७ भंग कहने चाहिए । इसी प्रकार अनाकारोपयोगयुक्त में भी क्रोधोपयुक्त इत्यादि सत्ताईस भंग कहने चाहिए । रत्नप्रभा पृथ्वी के विषय में दस द्वारों का वर्णन किया है, उसी प्रकार से सातों पृथ्वीयों के विषय में जान लेना चाहिए । किन्तु लेश्याओं में विशेषता है । वह इस प्रकार है [ ६५ ] पहली और दूसरी नरकपृथ्वी में कापोतलेश्या है, तीसरी नरकपृथ्वी में मिश्र लेश्याएँ हैं, चौथी में नील लेश्या है, पाँचवीं में मिश्र लेश्याएं हैं, छठी में कृष्ण लेश्या और सातवी में परम कृष्ण लेश्या होती है । [६६] भगवन् ! चौसठ लाख असुकुमारावासों में के एक-एक असुरकुमारावास में रहने वाले असुरकुमारों के कितने स्थिति स्थान कहे गए हैं ? गौतम ! उनके स्थिति-स्थान असंख्यात कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं- जघन्य स्थिति, एक समय अधिक जघन्य स्थिति, इत्यादि सब वर्णन नैरयिकों के समान जानना चाहिए । विशेषता यह है कि इनमें जहाँ सत्ताईस भंग आते
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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