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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
होकर उपस्थान करता है या अवीर्यता से ? गौतम ! जीव वीर्यता से उपस्थान करता है,
वीर्यता से नहीं करता । भगवन् ! यदि जीव वीर्यता से उपस्थान करता है, तो क्या बालवीर्य से करता है, अथवा पण्डितवीर्य से या बाल - पण्डितवीर्य से करता है ? गौतम ! वह बालवीर्य से उपस्थान करता है, किन्तु पण्डितवीर्य से या बालपण्डितवीर्य से उपस्थान नहीं करता । भगवन् ! कृत मोहनीयकर्म जब उदय में आया हो, तब क्या जीव अपक्रमण करता है; हाँ, गौतम ! करता है । भगवन् ! वह बालवीर्य से अपक्रमण करता है, अथवा पण्डितवीर्य से या बाल - पण्डितवीर्य से ? गौतम ! वह बालवीर्य से अपक्रमण करता है, पण्डितवीर्य से नहीं करता; कदाचित् बालपण्डितवीर्य से अपक्रमण करता है ।
जैसे उदीर्ण पद के साथ दो आलापक कहे गए हैं, वेसे ही 'उपशान्त' पद के साथ दो आलापक कहने चाहिए । विशेषता यह है कि यहाँ जीव पण्डितवीर्य से उपस्थान करता है और अपक्रमण करता है - बालपण्डितवीर्य से । भगवन् ! क्या जीव आत्मा (स्व) से अपक्रमण करता है अथवा अनात्मा (पर) से करता है ? गौतम ! आत्मा से अपक्रमण करता है, अनात्मा से नहीं करता । भगवन् ! मोहनीय कर्म को वेदता हुआ यह (जीव ) क्यों अपक्रमण करता है ? गौतम ! पहले उसे इस प्रकार ( जिनेन्द्र द्वारा कथित तत्त्व) रुचता है और अब उसे इस प्रकार नहीं रुचता; इस कारण यह अपक्रमण करता है ।
[४९] भगवन् ! नारक तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य या देव ने जो पापकर्म किये हैं, उन्हें भोगे बिना क्या मोक्ष नहीं होता ? हाँ गौतम ! नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव ने जो पापकर्म किये हैं, उन्हें भोगे बिना मोक्ष नहीं होता । भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! मैंने कर्म के दो भेद बताए हैं । प्रदेशकर्म और अनुभागकर्म । इनमें जो प्रदेशकर्म है, वह अवश्य भोगना पड़ता है, और इनमें जो अनुभागकर्म है, वह कुछ वेदा जाता है, कुछ नहीं वेदा जाता । यह बात अर्हन्त द्वारा ज्ञात है, स्मृत है, और विज्ञात है, कि यह जीव इस कर्म को आभ्युपगमिक वेदना से वेदेगा और यह जीव इस कर्म को औपक्रमिक वेदना से वेगा । बाँधे हुए कर्मों के अनुसार, निकरणों के अनुसार जैसा जैसा भगवान् ने देखा है, वैसा-वैसा वह विपरिणाम पाएगा । गौतम ! इस कारण से मैं ऐसा कहता हूँ कि यावत् किये हुए कर्मों को भोगे बिना नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य या देव का मोक्ष नहीं है ।
[५० ] भगवन् ! क्या यह पुद्गल - परमाणु अतीत, अनन्त, शाश्वत काल में था - ऐसा कहा जा सकता है ? हाँ, गौतम ! यह पुद्गल अतीत, अनन्त, शाश्वतकाल में था, ऐसा कहा जा सकता है । भगवन् ! क्या यह पुद्गल वर्त्तमान शाश्वत है, ऐसा कहा जा सकता है ? हाँ, गौतम ! ऐसा कहा जा सकता है । हे भगवन् ! क्या यह पुद्गल अनन्त और शाश्वत भविष्यकाल में रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है ? हाँ, गौतम ! कहा जा सकता है ।
इसी प्रकार के 'स्कन्ध' के साथ भी तीन आलापक कहने चाहिए । इसी प्रकार 'जीव' के साथ भी तीन आलापक कहने चाहिए ।
[५१] भगवन् ! क्या बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में छद्मस्थ मनुष्य केवल संयम से, केवल संवर से, केवल ब्रह्मचर्यवास से और केवल (अष्ट) प्रवचनमाता ( के पालन) से सिद्ध हुआ है, बुद्ध हुआ है, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करनेवाला हुआ है ? हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जो भी