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भगवती-१०/-/५/४८८
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में, वज्रमय गोल डिब्बों में जिन भगवन् की बहुत-सी अस्थियाँ रखी हुई है, जो कि असुरेन्द्र असुरकुमारराज तथा अन्य बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों के लिए अर्चनीय, वन्दनीय, नमस्करणीय, पूजनीय, सत्कारयोग्य एवं सम्मानयोग्य हैं । वे कल्याणरूप, मंगलरूप, देवरूप, चैत्यरूप एवं पर्युपासनीय हैं । इसलिए उन के प्रणिधान में वह यावत् भोग भोगने में समर्थ नहीं है । इसीलिए हे आर्यो ! ऐसा कहा गया है कि असुरेन्द्र यावत् चमर, चमरचंचा राजधानी में यावत् दिव्य भोग भोगने में समर्थ नहीं है । परन्तु हे आर्यो ! वह असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर, अपनी चमरचंचा राजधानी की सुधर्मासभा में चमर नामक सिंहासन पर बैठ कर चौसठ हजार, सामानिक देवों, त्रायस्त्रिंशक देवों और दूसरे बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों से परिवृत होकर महानिनाद के साथ होने वाले नाट्य, गीत, वादित्र आदि के शब्दों से होने वाले दिव्य भोग्य भोगों का केवल परिवार की वृद्धि से उपभोग करने में समर्थ है, किन्तु मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं ।
[४८९] भगवन् ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के लोकपाल सोम महाराज की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? आर्यो ! चार यथा-कनका, कनकलता, चित्रगुप्ता और वसुन्धरा । इनमें से प्रत्येक देवी का एक-एक हजार देवियों का परिवार है । इनमें से प्रत्येक देवी एक-एक हजार देवियों के परिवार की विकुर्वणा कर सकती है । इस प्रकार पूर्वापर सब मिल कर चार हजार देवियाँ होती हैं । यह एक त्रुटिक कहलाता है । भगवन् ! क्या असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर का लोकपाल सोम महाराजा, अपनी सोमा नामक राजधानी की सुधर्मासभा में, सोम नामक सिंहासन पर बैठकर अपने उस त्रुटिक के साथ भोग्य दिव्य-भोग भोगने में समर्थ है ? (हे आर्यो !) चमर के अनुसार यहाँ भी जानना । परन्तु इसका परिवार, सूर्याभदेव के परिवार के समान जानना । शेष सब वर्णन पूर्ववत्; यावत् वह सोमा राजधानी की सुधर्मा सभा में मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है ।
__ भगवन् ! चमरेन्द्र के यावत् लोकपाल यम महाराजा की कितनी अग्रमहिषियाँ है ? इत्यादि प्रश्न । (आर्यो !) सोम महाराजा के अनुसार यम महाराजा के सम्बन्ध में भी कहना, किन्तु इतना विशेष है कि यम लोकपाल की राजधानी यमा है । शेष सब वर्णन सोम महाराजा के समान । इसी प्रकार वरुण महाराजा का भी कथन करना । विशेष यही है कि वरुण महाराजा की राजधानी का नाम वरुणा है । इसी प्रकार वैश्रमण महाराजा के विषय में भी जानना । विशेष इतना ही है कि वैश्रमण की राजधानी वैश्रमणा है । शेष यावत्-वे वहाँ मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं हैं ।
भगवान् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बली की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? आर्यो ! पांच अग्रमहिषियाँ हैं । शुम्भा, निशुम्भा, रम्भा, निरम्भा और मदना । इनमें से प्रत्येक देवी के आठ-आठ हजार देवियों का परिवार है; इत्यादि वर्णन चमरेन्द्र के देवीवर्ग के समान । विशेष इतना है कि बलीन्द्र की राजधानी बलिचंचा है । इनके परिवार मोक उद्देशक के अनुसार जानना । यावत्-वह (सुधर्मा सभा में) मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है । भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के लोकपाल सोम महाराजा की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? आर्यो ! चार-मेनका, सुभद्रा, विजया और अशनी । इनकी एक-एक देवी का परिवार आदि समग्र वर्णन चमरेन्द्र के लोकपाल सोम के समान जानना । इसी प्रकार वैरोचनेन्द्र बलि के लोकपाल वैश्रमण तक सारा वर्णन पूर्ववत् जानना ।