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________________ भगवती-९/-/३२/४५३ २५५ से एक-एक नारक का संचार करना चाहिए । यावत् दस रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं । इस प्रकार यावत् अथवा दस रत्नप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । अथवा सख्यात रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं । इस प्रकार यावत संख्यात रत्नप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । अथवा एक शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं । जिस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी का शेष नरकपृथ्वीयों के साथ संयोग किया, उसी प्रकार शर्कराप्रभापृथ्वी का भी आगे की सभी नरक-पृथ्वीयों के साथ संयोग करना चाहिए । इसी प्रकार एक-एक पृथ्वी का आगे की नरक-पृथ्वीयों के साथ संयोग करना चाहिए; यावत् अथवा संख्यात तमःप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और संख्यात पंकप्रभा में होते हैं । इसी प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में, यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में | अथवा एक रत्नप्रभा में, तीन शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं । इस प्रकार इसी क्रम से एक-एक नारक का अधिक संचार करना । अथवा एक रत्नप्रभा मे, सख्यात शर्कराप्रभा और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं; यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, सख्यात बालुकाप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । अथवा दो रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं; यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । अथवा तीन रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं । इस प्रकार इस क्रम से रत्नप्रभा में एक-एक नैरयिक का संचार करना, यावत् अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और संख्यात पंकप्रभा में होते हैं; यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । अथवा एक रत्नप्रभा में, दो बालुकाप्रभा में और संख्यात पंकप्रभा में होते हैं । इसी प्रकार इसी क्रम से त्रिकसंयोगी, यावत सप्तसंयोगी भंगों का कथन. दस नैरयिकसम्बन्धी भंगों के समान करना । अन्तिम भंग जो सप्तसंयोगी है, यह है-अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में यावत् संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । __भगवन् ! असंख्यात नैरयिक, नैरयिक-प्रवेशक द्वारा प्रवेश करते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गांगेय ! वे रत्नप्रभा अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं, अथवा एक रत्नप्रभा में और असंख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं । संख्यात नैरयिकों के द्विकसंयोगी यावत् सप्तसंयोगी भंग समान असंख्यात के भी कहना । विशेष यह कि यहाँ ‘असंख्यात' यह पद कहना चाहिए । शेष पूर्ववत् । यावत्-अन्तिम आलापक यह है अथवा असंख्यात रत्नप्रभा में, असंख्यात शर्कराप्रभा में यावत् असंख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । भगवन् ! नैरयिक जीव नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए उत्कृष्ट पद में क्या रत्नाप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गांगेय ! सभी नैरयिक रत्नप्रभा में होते हैं ।
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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