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________________ २३६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद वह देशबंधक भी है, सर्वबंधक भी है । भगवन् ! वैक्रियशरीर का बंधक है, अथवा अबंधक है ? गौतम ! पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार आहारकशरीर के विषय में भी जानना । भगवन् ! (तैजसशरीर का बंधक जीव) कार्मणशरीर का बंधक है, या अबंधक है ? गौतम ! वह बंधक है, अबंधक नहीं है । भगवन् ! यदि वह कार्मणशरीर का बंधक है तो देशबंधक है, या सर्वबंधक है ? गौतम ! वह देशबंधक है, सर्वबंधक नहीं है । भगवन् ! जिस जीव के कार्मणशरीर का देशबंधक है, भंते ! क्या वह औदारिकशरीर का बंधक है या अबंधक है ? गौतम ! जिस प्रकार तैजसशरीर की वक्तव्यता है, उसी प्रकार कार्मणशरीर की भी देशबंधक है, सर्वबंधक नहीं है, तक कहना चाहिए । ४२९] भगवन ! इन औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मणशरीर के देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े आहारकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं, उनसे आहारकशरीर के देशबंधक जीव संख्यातगुणे हैं, उनसे वैक्रियशरीर के सर्वबंधक असंख्यातगुणे हैं, उनसे वैक्रियशरीर के देशबंधक जीव असंख्यातगुणे हैं, उनसे तैजस और कार्मण, इन दोनों शरीरों के अबंधक जीव अनन्तगुणे हैं, ये दोनों परस्पर तुल्य हैं, उनसे औदारिकशरीर के सर्वबंधक जीव अनन्तगुणे हैं, उनसे औदारिकशरीर के अबंधक जीव विशेषाधिक हैं, उनसे औदारिकशरीर के देशबंधक असंख्यातगुणे हैं, उनसे तैजस और कार्मणशरीर के देशबंधक जीव विशेषाधिक हैं, उनसे वैक्रियशरीर के अबंधक जीव विशेषाधिक हैं और उनसे आहारकशरीर के अबंधक जीव विशेषाधिक हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' । | शतक-८ उद्देशक-१० || [४३०] राजगृह नगर में यावत् गौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा- भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं-(१) शील ही श्रेयस्कर है; (२) श्रुत ही श्रेयस्कर है, (३) (शीलनिरपेक्ष) श्रुत श्रेयस्कर है, अथवा (श्रुतनिरपेक्ष) शील श्रेयस्कर है; अतः हे भगवन् ! यह किस प्रकार सम्भव है ? गौतम ! अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, वह मिथ्या है । गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ । मैंने चार प्रकार के पुरुष कहे हैं । -एक व्यक्ति शीलसम्पन्न है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं है । एक व्यक्ति श्रुतसम्पन्न है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं है । एक व्यक्ति शीलसम्पन्न भी है और श्रुतसम्पन्न भी है । एक व्यक्ति न शीलसम्पन्न है और न श्रुतसम्पन्न है । इनमें से जो प्रथम प्रकार का पुरुष है, वह शीलवान् है, परन्तु श्रुतवान् नहीं । वह उपरत है, किन्तु धर्म को विशेषरूप से नहीं जानता । हे गौतम ! उसको मैंने देश-आराधक कहा है । इनमें से जो दूसरा पुरुष है, वह शीलवान् नहीं, परन्तु श्रुतवान् है । वह अनुपरत है, परन्तु धर्म को विशेषरूप से जानता है । हे गौतम ! उसको मैंने देश-विराधक कहा है । इनमें से जो तृतीय पुरुष है, वह पुरुष शीलवान् भी है और श्रुतवान् भी है । वह उपरत है और धर्म का भी विज्ञाता है । हे गौतम ! उसको मैंने सर्व-आराधक कहा है । इनमें से जो चौथा पुरुष है, वह न तो शीलवान् है और न श्रुतवान् है । वह अनुपरत है, धर्म का भी विज्ञाता नहीं है । मैंने सर्व-विराधक कहा है ।
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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