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________________ भगवती-८/-/९/४२५ २३३ आहारकशरीरप्रयोगबंध, कालतः कितने काल तक रहता है ? गौतम ! सर्वबंध एक समय तक, देशबंध जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः भी अन्तमुहूर्त तक । भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्यतः अन्तमुहर्त और उत्कृष्टतः अनन्तकाल; कालतः अनन्त-उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीकाल होता है, क्षेत्रतः अनन्तलोक देशोन अर्द्ध पुद्गलपरावर्तन होता है । इसी प्रकार देशबंध का अन्तर भी जानना । ___ भगवन् ! आहारकशरीर के इन देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे कम यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े आहारकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं, उनसे देशबंधक संख्यातगुणे हैं और उनसे अबंधक जीव अनन्तगुणे हैं । [४२६] भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का-एकेन्द्रिय-तैजस-शरीरप्रयोगबंध, यावत् पंचेन्द्रिय-तैजसशरीरप्रयोगबंध । भगवन् ! एकेन्द्रियतैजसशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम इस प्रकार जैसे-अवगाहनासंस्थानपद में भेद कहे हैं, वैसे यहाँ भी पर्याप्त-सर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपपातिककल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रियतैजसशरीरप्रयोगबंध और अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रियतैजसशरीरप्रयोगबंध तक कहना | भगवन् ! तेजसशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! सवीर्यता, सयोगता और सद्रव्यता, यावत् आयुष्य के निमित्त से तथा तैजसशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से । भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध क्या देशबंध होता है, अथवा सर्वबंध ? गौतम ! देशबंध होता है, सर्वबंध नहीं होता । ___ भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध कालतः कितने काल तक रहता है ? गौतम ! यह दो प्रकार का है अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित । भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कालतः कितने काल का होता है ? गौतम न तो अनादि-अपर्यवसित का अन्तर है और न ही अनादि-सपर्यवसित का अन्तर है । भगवन् ! तैजसशरीर के इन देशबंधक और अबंधक जीवों में कौन, किससे यावत् अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! तैजसशरीर के अबंधक जीव सबसे थोड़े हैं, उनसे देशबंधक जीव अनन्तगुणे हैं। [४२७] भगवन् ! कार्मणशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! आठ प्रकार का । ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध, यावत् अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध । भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! ज्ञान की प्रत्यनीकता करने से, ज्ञान का निह्नव करने से, ज्ञान में अन्तराय देने से, ज्ञान से प्रद्वेष करने से, ज्ञान की अत्यन्त आशातना करने से, ज्ञान के अविसंवादन-योग से तथा ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से । भगवन् ! दर्शनावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! दर्शन की प्रत्यनीकता से, इत्यादि ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध के समान दर्शनावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध के भी कारण जानना; अन्तर इतना ही है कि यहाँ 'दर्शन' शब्द तथा यावत् ‘दर्शनविसंवादनयोग से तथा दर्शनावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से कहना । भगवन् ! सातावेदनीयकर्म-शरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! प्राणियों पर अनुकम्पा करने से, भूतों पर अनुकम्पा करने से इत्यादि, सातवें शतक में कहे अनुसार यहां भी प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को परिताप
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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