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________________ भगवती-८/-/२/३९५ सर्वभावों को जानता और देखता है । भगवन् ! मति-अज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार काद्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से मति-अज्ञानी मति-अज्ञान-परिगत द्रव्यों को जानता और देखता है । इसी प्रकार यावत् भाव से मति-अज्ञानी मति-अज्ञानी के विषयभूत भावों को जानता और देखता है । भगवन् ! श्रुत-अज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से श्रुतअज्ञानी श्रुत-अज्ञान के विषयभूत द्रव्यों का कथन करता है, बतलाता है, प्ररूपणा करता है । इसी प्रकार क्षेत्र से और काल से भी जान लेना । भाव की अपेक्षा श्रुत-अज्ञानी श्रुत-अज्ञान के विषयभूत भावों को कहता है, बतलाता है, प्ररूपित करता है । भगवन् ! विभंगज्ञान का विषय कितना है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य की अपेक्षा विभंगज्ञानी विभंगज्ञान के विषयगत द्रव्यों को जानता और देखता है । इसी प्रकार यावत् भाव की अपेक्षा विभंगज्ञानी विभंगज्ञान के विषयगत भावों को जानता और देखता है । [३९६] भगवन् ! ज्ञानी 'ज्ञानी' के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! ज्ञानी दो प्रकार के हैं । -सादि-अपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । इनमें से जो सादिसपर्यवसित ज्ञानी हैं, ये जघन्यतः अन्तमुहर्त तक और उत्कृष्टतः कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक ज्ञानीरूप में रहते हैं । भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानी आभिनिबोधिकज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! ज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी यावत् केवलज्ञानी, अज्ञानी, मति-अज्ञानी यावत् विभंगज्ञानी, इन दस का अवस्थितिकाल कायस्थितिपद अनुसार जानना । इन सब का अन्तर जीवाभिगमसूत्र अनुसार जानना । इन सबका अल्पबहुत्व बहुवक्तव्यता पद अनुसार जानना। भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञान के पर्याय कितने हैं ? गौतम ! अनन्त पर्याय हैं । भगवन् ! श्रुतज्ञान के पर्याय कितने हैं ? गौतम ! अनन्त पर्याय हैं । इसी प्रकार यावत्, केवलज्ञान के भी अनन्त पर्याय हैं । इसी प्रकार मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान के भी अनन्त पर्याय हैं | भगवन् ! विभंगज्ञान के कितने पर्याय कहे गए हैं ? गौतम ! विभंगज्ञान के अनन्त पर्याय हैं। भगवन् ! इन (पूर्वोक्त) आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान के पर्यायों में किनके पर्याय, किनके पर्यायों से अल्प, यावत् (बहुत, तुल्य या) विशेषाधिक हैं ? गौतम ! मनःपर्यवज्ञान के पर्याय सबसे थोड़े हैं, उनसे अवधिज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, उनसे श्रुतज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं, उनसे आभिनिबोधिकज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं और उनसे केवलज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं । भगवन् ! इन मतिअज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान के पर्यायों में किनके पर्याय, किनके पर्यायों से यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े विभंगज्ञान के पर्याय हैं, उनसे श्रुत-अज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं और उनसे मति-अज्ञान के पर्याय अनन्तगुणे हैं । भगवन् ! इन आभिनिबोधिकज्ञान-पर्याय यावत् केवलज्ञान-पर्यायों में तथा मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान के पर्यायों में किसके पर्याय, किसके पर्यायों से यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम !
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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