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भगवती-७/-/३/३४९
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वैमानिकों पर्यन्त चौवीस ही दण्डकों में इसी तरह कहना ।
भगवन् ! क्या वास्तव में, जिस कर्म का वेदन करेंगे, उसकी निर्जरा करेंगे, और जिस कर्म की निर्जरा करेंगे, उसका वेदन करेंगे? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि यावत् उसका वेदन नहीं करेंगे ? गौतम ! कर्म का वेदन करेंगे, नोकर्म की निर्जरा करेंगे । इस कारण से, हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है । इसी तरह नैरयिकों के विषय में जान लेना। वैमानिकपर्यन्त इसी तरह कहना चाहिए ।
भगवन् ! जो वेदना का समय है, क्या वही निर्जरा का समय है और जो निर्जरा का समय है, वही वेदना का समय है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! जिस समय में वेदते हैं, उस समय निर्जरा नहीं करते और जिस समय निर्जरा करते हैं, उस समय वेदन नहीं करते । अन्य समय में वेदन करते हैं और अन्य समय में निर्जरा करते हैं । वेदना का समय दूसरा है और निर्जरा का समय दूसरा है | इसी कारण हे गौतम ! मैं कहता हूँ कि...यावत् निर्जरा का जो समय है, वह वेदना का समय नहीं है।
भगवन् ! क्या नैरयिक जीवों का जो वेदना का समय है, वह निर्जरा का समय है और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव जिस समय में वेदन करते हैं, उस समय में निर्जरा नहीं करते और जिस समय में निर्जरा करते हैं, उस समय में वेदन नहीं करते । अन्य समय में वे वेदन करते हैं और अन्य समय में निर्जरा करते हैं । उनके वेदना का समय दूसरा है और निर्जरा का समय दूसरा है । इस कारण से मैं ऐसा कहता हूँ कि यावत् जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं है । इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना।
[३५०] भगवन् ! नैरयिक जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत है ? गौतम ! नैरयिक जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं । भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ?' गौतम ! अव्युच्छित्ति नय की अपेक्षा से नैरयिक जीव शाश्वत हैं और व्युच्छित्ति नय की अपेक्षा से नैरयिक जीव अशाश्वत हैं । इन कारण से हे गौतम ! मैं ऐसा कहता है कि नैरयिक जीव कथंचित् शाश्वत हैं और कथंचित् अशाश्वत हैं । इसी प्रकार वैमानिकों-पर्यन्त कहना । यावत् इसी कारण मैं कहता हूँ कि वैमानिक देव कथञ्चित् शाश्वत हैं, कथञ्चित् अशाश्वत हैं । भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है।
| शतक-७ उद्देशक-४ [३५१] राजगृह नगर में यावत् भगवान् महावीर से इस प्रकार पूछा- भगवन् संसारसमापनक जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! छह प्रकार के पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एवं, त्रसकायिक । इस प्रकार यह समस्त वर्णन जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार सम्यक्त्वक्रिया और मिथ्यात्वक्रिया पर्यन्त कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
[३५२] जीव के छह भेद, पृथ्वीकायिक आदि जीवों की स्थिति, भवस्थिति,