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________________ १६४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद शुक्ल पुद्गल तक समझना । इसी प्रकार नीले पुद्गल के साथ शुक्ल पुद्गल तक जानना । इसी प्रकार लाल पुद्गल को शुक्ल तक तथा इसी प्रकार पीले पुद्गल को शुक्ल तक (परिणत करने में समर्थ है । _इसी प्रकार इस क्रम के अनुसार गन्ध, रस और स्पर्श के विषय में भी समझना चाहिए । यथा-(यावत्) कर्कश स्पर्शवाले पुद्गल को मृदु स्पर्शवाले (पुद्गल में परिणत करने में समर्थ है ।) इसी प्रकार दो-दो विरुद्ध गुणों को अर्थात् गुरु और लघु, शीत और उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष, वर्ण आदि को वह सर्वत्र परिणमाता है । 'परिणमाता है' इस क्रिया के साथ यहाँ इस प्रकार दो-दो आलापक कहने चाहिए, यथा-(१) पुद्गलों को ग्रहण करके परिणमाता है, (२) पुद्गलों को ग्रहण किये बिना नहीं परिणमाता । [३१९] भगवन् ! क्या अविशुद्ध लेश्यावाला देव असमवहत-आत्मा से अविशुद्ध लेश्यावाले देव को या देवी को या अन्यतर को जानता और देखता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी तरह अविशुद्ध लेश्यावाला देव अनुपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्यावाले देव को, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? अविशुद्ध लेश्यावाला देव उपयुक्त आत्मा से अविशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? अविशुद्ध लेश्यावाला देव उपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? अविशुद्ध लेश्यावाला देव उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से अविशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? अविशुद्ध लेश्यावाला देव अनुपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? विशुद्ध लेश्यावाला देव अनुपयुक्त आत्मा द्वारा, अविशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? विशुद्ध लेश्यावाला देव अनुपयुक्त आत्मा द्वारा विशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? [आठों प्रश्नों का उत्तर] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।। भगवन् ! विशुद्ध लेश्यावाला देव क्या उपयुक्त आत्मा से अविशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? हाँ, गौतम ! ऐसा देव जानता-देखता है । इसी प्रकार क्या विशुद्ध लेश्यावाला देव उपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? हाँ, गौतम ! वह जानता-देखता है । विशुद्ध लेश्यावाला देव उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से अविशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? विशुद्ध लेश्यावाला देव, उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से, विशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? हाँ, गौतम ! वह जानता-देखता है । यों पहले कहे गए आठ भंगों वाले देव नहीं जानतेदेखते । किन्तु पीछे कहे गए चार भंगों वाले देव जानते-देखते हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' । | शतक-६ उद्देशक-१० _ [३२०] भगवन् ! अन्यतीर्थिक कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि राजगृह नगर में जितने जीव हैं, उन सबके दुःख या सुख को बेर की गुठली जितना भी, बाल (एक धान्य) जितना भी, कलाय जितना भी, उड़द जितना भी, मूंग-प्रमाण, यूका प्रमाण, लिक्षा प्रमाण भी बाहर निकाल कर नहीं दिखा सकता । भगवन् ! यह बात यों कैसे हो सकती है ? गौतम !
SR No.009781
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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