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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
दुन्दुभि के शब्द, तत शब्द, विततशब्द, घनशब्द, शुषिरशब्द, इत्यादि बाजों के शब्दों को । हाँ गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य बजाये जाते हुए शंख यावत्-शुषिर आदि वाद्यों के शब्दों को सुनता है ।
भगवन् ! क्या वह (छद्मस्थ) उन शब्दों को स्पृष्ट होने पर सुनता है, या अस्पृष्ट होने पर भी सुन लेता है ? गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य स्पृष्ट शब्दों को सुनता है, अस्पृष्ट शब्दों को नहीं सुनता; यावत् नियम से छह दिशाओं से आए हुए स्पृष्ट शब्दों को सुनता है । भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य आरगत शब्दों को सुनता है, अथवा पारगत शब्दों को सुनता है ? गौतम ! आरगत शब्दों को सुनता है, पारगत शब्दों को नहीं ।
भगवन् ! जैसे छद्मस्थ मनुष्य आरगत शब्दों को सुनता है, किन्तु पारगत शब्दों को नहीं सुनता, वैसे ही, हे भगवन ! क्या केवली भी आरगत शब्दों को ही सुन पाता है, पारगत शब्दों को नहीं सुन पाता ? गौतम ! केवली मनुष्य तो आरगत, पारगत, अथवा समस्त दूरवर्ती
और निकटवर्ती अनन्त शब्दों को जानता और देखता है । भगवन् ! इसका क्या कारण है ? गौतम ! केवली पूर्व दिशा की मित वस्तु को भी जानता देखता है, और अमित वस्तु को भी जानता-देखता है; इसी प्रकार दक्षिण दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर दिशा, ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा की मित वस्तु को भी जानता-देखता है तथा अमित वस्तु को भी जानता-देखता है । केवलज्ञानी सब जानता है और सब देखता है । केवली भगवान सर्वतः जानता-देखता है, केवली सर्वकाल में, सर्वभावों (पदार्थों) को जानता-देखता है । केवलज्ञानी के अनन्त ज्ञान
और अनन्त दर्शन होता है । केवलज्ञानी का ज्ञान और दर्शन निरावरण होता है । हे गौतम ! इसी कारण से ऐसा कहा गया है कि केवली मनुष्य आरगत और पारगत शब्दों को, यावत् सभी प्रकार के दूरवर्ती और निकटवर्ती शब्दों को जानता-देखता है ।
[२२६] भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य हंसता है तथा उत्सुक (उतावला) होता है ? गौतम ! हाँ, छद्मस्थ मनुष्य हंसता तथा उत्सुक होता है । भगवन् ! जैसे छद्मस्थ मनुष्य हंसता है तथा उत्सुक होता है, वैसे क्या केवली भी हंसता और उत्सुक होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि केवली मनुष्य न तो हंसता है और न उत्सुक होता है ? गौतम ! जीव, चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से हंसते हैं या उत्सुक होते हैं, किन्तु वह कर्म केवलीभगवान् के नहीं है; इस कारण से यह कहा जाता है कि जैसे छद्मस्थ मनुष्य हंसता है अथवा उत्सुक होता है, वैसे केवलीमनुष्य न तो हंसता है और न ही उत्सुक होता है ।।
__ भगवन् ! हंसता हुआ या उत्सुक होता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बांधता है ? गौतम ! सात प्रकार अथवा आठ प्रकार के कर्मों को बांधता है । इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त कहना । जब बहुत जीवों की अपेक्षा पूछा जाए, तो उसके उत्तर में समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर कर्मबन्ध से सम्बन्धित तीन भंग कहना ।
भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य निद्रा लेता है अथवा प्रचला नामक निद्रा लेता है ? हाँ, गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य निद्रा लेता है और प्रचला निद्रा भी लेता है । जिस प्रकार हंसने के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर बतलाए गए हैं, उसी प्रकार निद्रा और प्रचला-निद्रा के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर जान लेने चाहिए । विशेष यह है कि छद्मस्थ मनुष्य दर्शनावरणीय कर्म के उदय से