________________
११२
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
परिक्षेप (परिधि) पचास हजार पांच सौ सत्तानवे योजन से कुछ अधिक कहा गया है । प्रासादों की चार परिपाटियाँ कहनी चाहिए, शेष नहीं ।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम महाराज की आज्ञा में, सेवा में, वचन-पालन में, और निर्देश में ये देव रहते हैं, यथा-सोमकायिक, अथवा सोमदेवकायिक, विद्युत्कुमारविद्युत्कुमारियाँ, अग्निकुमार-अग्निकुमारियाँ, वायुकुमार-वायुकुमारियाँ, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारारूप; ये तथा इसी प्रकार के दूसरे सब उसकी भक्ति वाले, उसके पक्ष वाले, उससे भरणपोषण पाने वाले देव उसकी आज्ञा, सेवा, वचनपालन और निर्देश में रहते हैं ।।
इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में जो ये कार्य होते हैं यथाग्रहदण्ड, ग्रहमूसल, ग्रहगर्जित, ग्रहयुद्ध, ग्रह-श्रृंगाटक, ग्रहापसव्य, अभ्र, अभ्रवृक्ष, सन्ध्या , गन्धर्वनगर, उल्कापात, दिग्दाह, गर्जित, विद्युत्, धूल की वृष्टि, यूप, यक्षादीप्त, धूमिका, महिका, रजउद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्दपरिवेष, सूर्यपरिवेष, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, अथवा उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ, पूर्वदिशा का वात और पश्चिमदिशा का वात, यावत् संवर्तक वात, ग्रामदाह यावत् सन्निवेशदाह, प्राणक्षय, जनक्षय, धनक्षय, कुलक्षय यावत् व्यसनभूत अनार्य तथा उस प्रकार के दूसरे सभी कार्य देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम महाराज से अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत, अस्मृत तथा अविज्ञात नहीं होते ।।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम महाराज के ये देव अपत्यरूप से अभिज्ञात (जाने-माने) होते हैं जैसे-अंगारक (मंगल), विकालिक, लोहिताक्ष, शनैश्चर, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बुध, बृहस्पति और, राहु ।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल–सोम महाराज की स्थिति तीन भाग सहित एक पल्योपम की होती है, और उसके द्वारा अपत्यरूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम की होती है । इस प्रकार सोम महाराज, महाकृद्धि और यावत् महाप्रभाव वाला है ।
[१९५] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान कहाँ है ? 'गौतम ! सौधर्मावतंसक नाम के महाविमान से दक्षिण में, सौधर्मकल्प से असंख्य हजार योजन आगे चलने पर, देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज का वरशिष्ट नामक महाविमान बताया गया है, जो साढ़े बारह लाख योजन लम्बा-चौड़ा है, इत्यादि सारा वर्णन सोम महाराज के विमान की तरह, यावत् 'अभिषेक' तक कहना । इसी प्रकार राजधानी और यावत् प्रासादों की पंक्तियों के विषय में कहना ।
देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल यम महाराज की आज्ञा, सेवा, वचनपालन और निर्देश में रहते हैं, यथा-यमकायिक, यमदेवकायिक, प्रेतकायिक, प्रेतदेवकायिक, असुरकुमारअसुरकुमारियाँ, कन्दर्प, निरयपाल, आभियोग; ये और इसी प्रकार के वे सब देव, जो उस की भक्ति में तत्पर हैं, उसके पक्ष के तथा उससे भरण-पोषण पाने वाले तदधीन भृत्य या उसके कार्यभारवाहक हैं । ये सब यम महाराज की आज्ञा में यावत् रहते हैं ।
जम्बूद्वीप में मेरूपर्वत से दक्षिण में जो ये कार्य समुत्पन्न होते हैं । यथा-विघ्न, डमर, कलह, बोल, खार, महायुद्ध, महासंग्राम, महाशस्त्रनिपात अथवा इसी प्रकार महापुरुषों की मृत्यु, महारक्तपात, दुर्भूत, कुलरोग, ग्राम-रोग, मण्डलरोग, नगररोग, शिरोवेदना, नेत्रपीड़ा, कान, नख और दांत की पीड़ा, इन्द्रग्रह, स्कन्दग्रह, कुमारग्रह, यक्षग्रह, भूतग्रह, एकान्तर ज्वर, द्वि