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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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मर्यादा भी नहीं छोड़ता हैं । पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा- एक पुरुष है उसे धर्म प्रिय है किन्तु वह धर्म में दृढ़ नहीं है । एक पुरुष है वह धर्म में दृढ़ है किन्तु उसे धर्म प्रिय नहीं है । एक पुरुष है उसे धर्म प्रिय भी है और वह धर्म में दृढ़ भी हैं । एक पुरुष है उसे धर्म भी प्रिय नहीं है और वह धर्म में दृढ़ भी नहीं है ।
आचार्य चार प्रकार के हैं । यथा- एक आचार्य दीक्षा देते हैं किन्तु महाव्रतों की प्रतिज्ञा नहीं करते हैं । एक आचार्य महाव्रतों की प्रतिज्ञा कराते हैं किन्तु दीक्षा नहीं देते । एक आचार्य दीक्षा भी देते हैं और महाव्रत भी धारण कराते हैं । एक आचार्य न दीक्षा देते हैं और न महाव्रत धारण कराते हैं ।
आचार्य चार प्रकार के हैं ? यथा- एक आचार्य शिष्य को आगम ज्ञान प्राप्त करने योग्य बना देते हैं । किन्तु स्वयं आगमों का अध्ययन नहीं कराते । एक आचार्य आगमों का अध्ययन कराते हैं किन्तु शिष्य को आगम ज्ञान प्राप्त करने योग्य नहीं बनाते । एक आचार्य शिष्य को योग्य भी बनाते हैं और वाचना भी देते हैं । एक आचार्य न शिष्य को योग्य बनाते हैं और न वाचना देते हैं ।
अन्तेवासी (शिष्य) चार प्रकार के हैं । एक प्रव्रजित शिष्य है किन्तु उपस्थापित शिष्य नहीं है । एक उपस्थापित शिष्य हैं किन्तु प्रव्रजित शिष्य नहीं हैं । एक शिष्य प्रव्रजित भी है और उपस्थापित भी है । एक शिष्य प्रव्रजित और उपस्थापित भी नहीं हैं ।
शिष्य चार प्रकार के हैं । एक उद्देशना शिष्य है किन्तु वाचना शिष्य नहीं है । एक वाचना शिष्य है किन्तु उद्देशना शिष्य नहीं है । एक उद्देशना शिष्य भी है और वाचना शिष्य भी हैं । एक उद्देशना शिष्य भी नहीं है और वाचना शिष्य भी नहीं है ।
निर्ग्रन्थ चार प्रकार के है । यथा- एक निर्ग्रन्थ दीक्षा में ज्येष्ठ है किन्तु महापाप कर्म और महापाप क्रिया करता हैं । न कभी आतापना लेता है और न पंचसमितियों का पालन ही करता हैं । अतः वह धर्म का आराधक नहीं है । एक निर्ग्रन्थ दीक्षा में ज्येष्ठ है किन्तु पापकर्म और पाप क्रिया कदापि नहीं करता है । आतापना लेता है और समितियों का पालन भी करता है अतः वह धर्म का आराधक होता है । एक निर्ग्रन्थ दीक्षा में लघु है किन्तु महापाप कर्म और महापाप क्रिया करता हैं, न कभी आतापना लेता है और न समितियों का पालन करता है । अतः वह धर्म का आराधक नहीं होता है । एक निर्ग्रन्थ दीक्षा में लघु है किन्तु कदापि पाप कर्म और पाप क्रिया नहीं करता हैं, आतापना लेता है और समितियों का पालन भी करता हैं । अतः वह धर्म का आराधक होता हैं । इसी प्रकार निर्ग्रन्थियों, श्रावकों और श्राविकाओं के भांगे कहें ।
[३४३] श्रमणोपासक चार प्रकार के हैं । यथा - १ . माता-पिता के समान २. भाई के समान । ३. मित्र के समान । और ४. शौक के समान ।
श्रमणोपासक चार प्रकार के हैं । यथा- १. आदर्श समान । २. पताका समान । ३. स्थाणु समान । और ४. तीक्ष्ण कांटे के समान ।
[ ३४४] भगवान महावीर के जो श्रमणोपासक सौधर्मकल्प के अरुणाभ विमान में उत्पन्न हुए हैं उनकी चार पल्योकी स्थिति हैं ।